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सप्तदश चंद्र प्रज्ञाप्ति सूत्र षष्ठ-उपाङ्ग
अप्पणवि वासेण, सम्म निप्पजए सस्तं ॥ ४॥ आइच्च तेयं तविया खणलवदिवस है ऊऊ, परिणमंति पुरेइय थलाति, त माह अभिवड्डियं जाण ॥ ५ ॥ ता साणप्रमाण संवत्सर का यंत्र
अब लक्षण संवत्सर का वथन करते
हैं. लक्षण संवत्सर के पांच भेद कहे संवत्सर । संवत्सरका मान | मास का मान.| युग का मान
हैं जिनके नाम-१ नक्षत्र २ चंद्र के नाम |दिन भाग छेद दिन भाग छद ग.दि. मुभा.६२
० ऋतु ४आदित्य और ५अभिवर्धन. . नक्षत्र ३२७ १६७२७ २१ ६७ ६७ ० ० ० इन में नक्षत्र संवत्सर के पांच प्रकार चंद्र ३५४ ६२१२२० ३२ ६२ ६२ ० ० . के लक्षण कडे.. सम्यक् प्रकार से ऋत ३६०८.३० ० ०६१००० क्षत्रयोग करे और सम्पक प्रकार से आदित्य ३६० .३० ३१ ६२६० ० ० . ऋत परिणमें अर्थात् इस संवत्सर में अभिवर्धना३८४४४६२ १३ १२११२४५७ ७११ २३ नक्षत्र के सरिखे नाम से ऋतु के पर्यव. वर्तते मास संपूर्ण करे. स १ उत्तराषाढा नक्षत्र अषाढी पूर्ण मासी समाप्ति करे २ अपाढी पूर्णिमा की साश ऋतु भी संपूर्ण होई बहुत ताप नहोबे ४ अति शीत भी न होवे और ५ वर्षा बहुन हावे. इन पांच लक्षणा से नक्षत्र संवत्सर जानना. अब चंद्र संवत्र का लक्षण करते हैं. है
चंद्रमा की साथ सम्यग् प्रकार से पूर्णिमा में नक्षत्र योग करे, विषमचारी नक्षत्र होवे, जिस 'नामका मास हाये उस से दूसरे नाम वाले नक्षत्र एक साथ पूर्णिमा का योग संपूर्ण करे. पानी बहुत बरसे ।
दशवा पाहुडे का बीसवा अंतर पडा Hot
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