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________________ सत्र अर्थ अनुवादक बाल जरी मुनि श्री अमालक ऋषिजी मेति ॥ ३ ॥ धणिट्ठा मक्खन्ते एगं अहोरते णेति ॥ तो चणं मासंसि चउरंगुल पोरसिए छायाए सूरिए अणुपरियह त तस्सणं मासस्स चरमदिवसे दे पायाणि चारि छाया अशा की ह की प्रतिदिन मांडले २ पर हानिवृद्धि करना हुआ म. शुदी १५ को दो पांव से पैौरमी होवे. यह व्यवहार नय से कहा परंतु नित्रय व्यत तीस अहोरात्र में चार अंगुल की हानि वृद्धि होने और चंद्रनाथ एवर वृद्धि होने. इस कथन को पूर्वाचार्योंने गाथा से बनालाय है सो कहते हैं. गया-पत्र पर गणे तिहि । हिए पास अयये ॥ छभित्तं । जलतं त्राण हि ॥ १ ॥ जं होइ विस लहाँ । दक्ख मरण इनिज णायचं ॥ अ हवस लद्धं । णायनं उत्तर अयणं ॥ २ ॥ अथणे गय तिथि रासी । Jain Education International चउगुण पञ्चपायें भगमे ॥ जलद्धतं गुलाणीया । खयं बुद्धाय पोरीएओ || ३ || दाहिण वृड्डी दु पयाओ | अंगुलाणं तुडोइ नायव्यो । उत्तर अयणे हाणी कायच्या चढाई पायादि ॥ ४ ॥ सवण बहुल पडिया | दुपाया पोरमी धूया ॥ चतरि अंगुताइ । मासेण बहुए ततां ॥ ५ ॥ इक्कती ड भागा तिहिए । पुण अंगुलस्स चत्तारि ॥ दाहिण अपणे बुड्डी । जाब चत्तारि पयाई ।। ६ ।। उत्तर अपणे हाणी । चडा है। पाया जात्र दो पया ॥ एवं पोरसी होइए । वुड्डी खयादोति णायव्त्रा || ७ || बुड्डी वा हाणी णायव्त्रा ।। जावइया पोरसीए दिह्रो भो । ततो दिवनगएणं । जं लद्धं तत्त अवणगयं ॥ ८ ॥ इत का अर्थ-युग में { • बरु राज उदुर बाथ सुखदेवसहायजी ज्यालाममादजी • For Personal & Private Use Only २१० www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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