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4 अनुावदक-सलब्रह्मचारी माने श्री अमोलक ऋषिजी -
एवं कत्तियविसा हियायेय मगसिरिए जेट्ठामूलीयेय ता जयाणं पोसि पुष्णिमा भवति तयाणं असाढी अमावासा भवति, जयाणं असाढी पुण्णिमा भवति,
तयाणं पोसि अमावासा भवति॥इति दसम पहुडस्स सत्तमं पाहुडं सम्मत्तं ॥१०॥७॥ आत है और जो वैशाख मास की पर्णिमा को होने हैं. वे कार्तिक मास की अमावास्या को आते है. मृगशर मास की पूर्णिमा को जो नक्षत्र हाते हैं. वे ज्येष्ठ मास की अमावस्या को आते हैं और जो ज्येष्ट मास की अमावास्या का होते हैं वे प्रशार की पूर्णिमा को आत हैं. जो पाप मास की पूर्णिमा को नक्षत्र आते हैं वे आपाढ अमावास्या को आत हैं और उनो अपर अपरावास्या को आते हैं ये पौष पूर्णिमा को आते हैं. यह दरावा पाहुडे का सातवा अंतर पाहुडा संपूर्ण मा ।। १० ।। ७ ॥
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवस हायजी ज्वालाप्रसादजी
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