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सूत्र
अर्थ
488+ सप्तदश चंद्र प्रज्ञप्ति-सूत्र षष्ठ उपाङ्ग 438+
समति, तापटुवया खलु णक्खत्ते पुण्यभागे समखेते तिसति मुहुत्ते पातोचंदेणसद्धिं जोगं जाएति, ततपच्छा अवरराय ॥ एवं खलु पुव्वा पोट्ठवया पणक्लत्ते एंगच दिवस एवं च राति चंदेणं सद्धिं जोगजोत्तेति २ ता, जागं अणुपरि यहुति २ त पातो चंदे उत्तरापोटुबयाणं समप्पिति ता उत्तरापोटुवया, खलुणक्खत्ते उभयभागे दिवस खेत्तं पणपालीसति मुहुत्ते, तं पढमयाए पातो चंदणंसद्धि
प्राप्त करे नहीं परंतु रात्रि में ही चंद्र की साथ योग करे अर्थात् युग के तीसरी दिन की रात्रि में ६ मुहूर्त ३० भाग ६१ ये २१ भाग तक में शतभिषा नक्षत्र के
शेष भाग ५ मुहुर्त ३६ ६५ ये और ३९ भाग ३७ रहे, वहांने प्रथम समय में पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र पूर्व की रेखा से दक्षिण की रेखा, पर्यंत तीस मुहूर्त तक योग करे, इससे वह नक्षत्र तीसरा दिन की शेष रात्रि पूर्ण करे ( चौथा दिन पूर्ण करे और चौथा दिन की रात्रि के ६ मुहूर्त ३२ भाग
६१ ये ३९ भाग ६७ ये पूर्ण करे. और शेप ५ मुह ३३ भाग ६१ ये २८ भाग ६७ ये रहे इस क में उत्तराभाद्रपद नक्षत्र प्राप्त होवे यह उत्तराभाद्रपद नक्षत्र उभयभागी १४५ मुहूर्त का है. यह प्रभात से अर्थात् जो शेष रात्रि रहीं है वहां से चंद्र की साथ योग करते हुवे
प्रथम
समय
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488+ दशा पाहुडे का चौथा अंतर पाहुडा
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