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सप्तदश-चन्द्रप्रज्ञाप्त सूत्र पह-उपाङ्ग
विसे भवति, तयाणं जंबूद।वे मंदरस्स पन्वयस्स पुरस्थिम पञ्चस्थिमेणं राई भवति. जयाणं जंबद्दवेदीवे मदरम पवयर पुरस्थिमेणं दिवसे भवति तयाणं पञ्चत्थिमेणं दिवसे भवति, जयाण पच्चत्थिमेणं दिवमे भवति, तयाणं जबद्दविदीवे मंदरस्म पठनयस्स उत्तर दाहिणाणं राई भवति ॥३॥ ता जयाणं जंबुर्द वेदीवे दाहिणढे उक्कासए अटारम मुहत्ते दिवमे भवति तयाणं उत्तरड़े उक्कोसए अट्रारस महत्ते दिवसे भवति जयाणं उत्तरढू उक्कासए अट्ठारस महुतं दिवमे भवति तयाणं जंबुद्दीवेदीवे मंदरस्स पवयस्म पुरथम पञ्चत्मिणं जहांणया दुवालस मुहुत्ता राई भवति, ता जयाणं
जंदीवेदीय पंदरस्स पव्ययस्न पुर त्यमेणं अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे तयाणं पञ्चत्थिमेणंवि उत्तागमें भी पद होना है और ना उत्तम दिन हाता है नव पूर्व और पश्चिम में रात्रि होती है ऐसेही जा इन जम्बूद्ध प पू में दिन का है नव पश्चिा में भा दिन होता है और जब पश्चिममें दिन होता तर उत्तर और दाक्षणमें रहती || ना जंबुद्ध प दडग में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्नका दिन होता है तब उत्तरार्ध में भी उत्कृष्ट अठरह महू का दिन होता है, जा उत्तरार्ध में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्न का दिन होता है वा पूपिश्चिम में जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है. जब जम्बूद्वीप में मेरू पर्वत की पूर्व में उत्कृष्ट अठारह.. मुहूर्त का दिन होता हैं तब पश्चिम में भी।
+ आठवा पाहुडा 4
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