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मरण
गला सरियस्स लैस्स पडिहणति अतिट्ठाविणं पोग्गला मूरियस्स लेसं पडिहणंति, चरमलेसं तरगतविणं पोग्गला सूरियस्स लेसं पडिहणति आहितति वदेज्जा ॥
इति पंचमं पाहुडं सम्मत्तं ॥ ५ ॥ पक्ष ब्रहण करते हैं इस लिये उन का वचन मिथ्या है. इन में जो पुगल सूर्य की लेश्या स्पर्शते वही पुदल मूर्य की लेश्या की घात करते हैं. कठिन पुलों गर्य की लेश्या का प्रतिघात करते हैं। चरम लेश्या कि जो पर्वत में नहीं भेदाती है वही मूर्य की लेश्या का घात करती है. यह पांचवा पाहुडा संपूर्ण हुवा ॥५॥
समरश चन्द्र प्रज्ञप्ति सून
80 पांचवा पाहुडा
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