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________________ १११. पांचवा M ॥ पंचम प्रामृतम् ॥.. "ता किप्तणं सरियस्स लेमा पडिहंता आहितंति वदेजा ? तत्थ खलु इमातो धीसं पडि वचीतो पण्णत्ताओ तजहा तत्थी एव महंसु ता मंदर पध्वयंमि मरियम लेता पडिहंता आहितेति वदजा ॥॥ एगे पुण एवमासु तामरूपायाम मरियरस लेस्सा जाव बवेजा ॥ २ ॥ एवं एएणं अभिलावेणं सा मणोरमंमि पश्यसि ॥ ३ ॥ 'सुदंसण पब्वयं ॥ ४ ॥ ता सयपभसिणं पब्वयं ॥ ५ ॥ ता गिरिरायसि पव्ययं ॥६॥ ता रयणाचुयं गं पवयं ॥ ७॥ सिलुच्चयं पब्वयामि ॥ ८ ॥ता लोगमझसि अब पाचवा पाहुडा लेश्या के मनिपातका कहने ? प्रश्नम की लगा-भाताप का प्रतिपात कहां होता ETत्तर-इस में अभ्यतीथी की प्ररूपणा बीस पडिकृत्तियों की.इन में कितनेक सकते दिर पर्वत से सूर्य की लेश्या का प्रतिपातमा है, २ किनक मा कम किमहर्षन होणे १३ कितनेक एसा कहते हैं कि मनोरम पर्वन से ४ किसनेक ऐसा कहते सुदर्शन पर्वत मे ५ वयंप्रभ से T. गिरिराज से ७ रस्मच्युत पर्वत से ८ शिक्षा के उपनय से कितनेक ऐसा करने कि लोक मध्य पर्वतो उस से सूर्य की लेडया का प्रतिघात होता है. : १. लोककी नाभि के स्थान पर्यो । : ath Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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