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जोयरस सट्ठिभागंच एगट्टीया छेत्ता एकूगवीसाए चुणिया भागेहिं चक्खु फासं हव्व मागच्छति ॥ तयाणं अट्ठारस मुहत्ते दिवस दोहिं एगट्ठीभागेहिं ऊणे, दुवालस मुहुत्ता राई दोहिं अहिया ॥ से निक्खममाणे सूरिए दाच्चंति अहोरत्तसि अब्भंतरं तच्चं मंडलं आव
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भाग और १८३ के ११५ चरणी ये भाग होवे. यह एक अहो रात्रि का प्रमाण बतलाया. एक २ मुहूर्त में कितना शीघ्र गति से चले सो बताते हैं. १७ गठिया भाग को १८३ से गुनाकार
करने से ३१११ होवे, उस में २१५ मीलना नव ३२२६ हावे. पक अहोरात्रि के तीस मुहूर्न होने से #तीस का भाग देना, इस से १२७ भाग १.८३ के आये और शेष के १६ भाग रहे. इस से एक
मुहूर्त में १८३ के १०७ भाग और तीस के : ६ भाग इतना योजन मर्य चले. इस समय भरतक्षेत्र मनुष्य को ४७१.७९ योजन व एक साठ भाग को फोर ६१ का भाग देकर उस में से १९ भाग में इतनी दूर से मय हीट गोचर में आवे. यहां पर एकसठिये दो भाग कम अठारह मुहूर्त का दिनमान है. उस में के अर्थ भाग से सूर्य दृष्टि गोचर में आवे. इस से १८ को ६१ का गुना करते ११०९८होवे उसमें से दो भाग कम करते १०९६ होवे इस को आधा करने से५४८ होवे और इस मंडलकी
परिधि ३१५१०७ योजन की है इस से इन की साथ गुना करने से १७२६७८६३६ योजनकी राशि हुइ क/एक मांडला ६० मुहूर्त का है इस से उस को भी ६१ से गुना करने से ३६६० होके. अब प्रथम की है
wwwwwwwwwwwwww प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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