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अर्थ
*48+ पट्टमांग ज्ञाता धर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 48
सज्जीवं ७०, निजीवं ७१, सउणरुय ७२ ॥ ७६ ॥ तरणं से कलायरिस मेहकुमारं लेहाइया ओगणिय पहाणाओ सउणरूय पजवसणाओ वाबतरिकलाओ सुत्तओय अत्थओय करणओय सेहावइ, सिक्खावेइ, सेहावित्ता; सिक्खावित्ता अम्मापियूणं उवइ ॥ ७७ ॥ एणं मेहस्स अम्मापियरो तं कलायरियं महुरेहिं वयणेहिं त्रिपुलेणं गंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणइ २ चा विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइ २ तापडिविसज्जेइ ॥ ७८ ॥ तणं से मेहकुमारे बाबत्तरिकला पंडिए, णत्रंगसुत
खेडनेकी खेती करने की ६७ कमलादि नाली छेदनेकी, ६८ पत्र छेदनकी, ६९ कडे कुंडलाकार छेदन करनेकी ७० { मूच्छित को शुद्धि में लाने की ७१ जीते को मारनेकी ७२ काकादिक के शकुन देखनेकी यों७२ कलाओं का विधि पूर्वक अभ्यास करावा ॥ ७६ ॥ उक्त प्रकार लेखन गणितादिसे- प्रकुन देखने पर्यम्त
{ यों बहत्तर कलाओं का मूल व अर्थ सहित शिक्षा देकर मेघकुमार को उन के मातापिता की पास कल्प्रचार्य लेगये ॥ ७७ ॥ मेघकुमार के मातापिताने उस कलाचार्य को मधुर वचनों से व विपुल गंध वस्त्र माला व अलंकार से सत्कार सम्मान देकर विपुल आजीविका रूप प्रीति दान देकर विसर्जित | किया ॥ ७८ ॥ अव मेघकुमार बहोत्तर कला में पण्डित हुए, २ कान, २ आंख, २ नासिका, ७ जिव्हां,
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+१+ उरिक्षत (मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन 86+
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