SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 779
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 44 . 48ष्टाजज्ञासापकया का द्वितीया श्रुतस्कष48 तेणं भंते ! लोए एवं जहा देवाणंदा जाव सयमेव पव्वविया ॥१८॥ ततेणं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालि सयमेव पुष्फलाए अजाए सिरमणियत्ताए दलयइ ॥ १९ ॥ तएणं सा पुष्पचूला अजा कालिंकुमारि सयमेव पवावेइ, जाव एवसंपजिसाणं विहरइ ॥ २० ॥ तएणं सा काली अजा जाया इरियासमिया जाव गुसबंभयारिणी ॥ तरणं सा. काली अजा पुप्फचूलाए अजाए अंतिए सामाइय माइयाइं एगारस अंगाई अहिज्जइ, बहुइं चउत्थ जाव विहरद ॥ २२ ॥ तएणं सा काली अज्जा भण्णयाकयाई सरीर पाउसिया जायावि होत्था, अभिक्खणं २ हत्थे धोति पाएधोवेति सीसंधोवेइ मुहं धोवेइ थणं तराई धोवेइ कक्खतराणि धोवेति गुज्झंतराणि धोवेइ जत्थ २ कहना. यावत् स्वयमेव प्रबजित बनी ॥१८॥ पुरुषादानीय श्री पार्श्वनाथ स्वामीने काली आर्जिका को पुष्पचूला आर्या की शिष्यनी वनाई ॥ १९ ॥ पुष्पचूला आर्याने काली कुमारी को अपने हाथ से दीक्षा दी यावत् आज्ञा अंगीकार कर विचरने लगी ॥ २० ॥ अब वह कालीआर्या ईर्यासमितिवाली + यावत् गुप्त ब्रह्मचारिणी बनी ॥ २१ ॥ वह काली आर्या पुष्पचूका आर्या की पास से सामायिकादि इग्यारह अंग पढो. हुन उपवास बले आदि तपश्चर्या से आत्मा को भावती हुई विचरने लगी ॥ २२ ॥ एकदा काली आर्या शरीर का द्वेष करने वाली हुई. वारंवार हाथ धोने लगी, पाप धोने लगी, मस्तक पहिला वर्ग का पहिला अध्ययन 4280 । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy