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48ष्टाजज्ञासापकया का द्वितीया श्रुतस्कष48
तेणं भंते ! लोए एवं जहा देवाणंदा जाव सयमेव पव्वविया ॥१८॥ ततेणं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालि सयमेव पुष्फलाए अजाए सिरमणियत्ताए दलयइ ॥ १९ ॥ तएणं सा पुष्पचूला अजा कालिंकुमारि सयमेव पवावेइ, जाव एवसंपजिसाणं विहरइ ॥ २० ॥ तएणं सा काली अजा जाया इरियासमिया जाव गुसबंभयारिणी ॥ तरणं सा. काली अजा पुप्फचूलाए अजाए अंतिए सामाइय माइयाइं एगारस अंगाई अहिज्जइ, बहुइं चउत्थ जाव विहरद ॥ २२ ॥ तएणं सा काली अज्जा भण्णयाकयाई सरीर पाउसिया जायावि होत्था, अभिक्खणं २ हत्थे धोति पाएधोवेति सीसंधोवेइ मुहं धोवेइ थणं
तराई धोवेइ कक्खतराणि धोवेति गुज्झंतराणि धोवेइ जत्थ २ कहना. यावत् स्वयमेव प्रबजित बनी ॥१८॥ पुरुषादानीय श्री पार्श्वनाथ स्वामीने काली आर्जिका को पुष्पचूला आर्या की शिष्यनी वनाई ॥ १९ ॥ पुष्पचूला आर्याने काली कुमारी को अपने हाथ से दीक्षा दी यावत् आज्ञा अंगीकार कर विचरने लगी ॥ २० ॥ अब वह कालीआर्या ईर्यासमितिवाली + यावत् गुप्त ब्रह्मचारिणी बनी ॥ २१ ॥ वह काली आर्या पुष्पचूका आर्या की पास से सामायिकादि
इग्यारह अंग पढो. हुन उपवास बले आदि तपश्चर्या से आत्मा को भावती हुई विचरने लगी ॥ २२ ॥ एकदा काली आर्या शरीर का द्वेष करने वाली हुई. वारंवार हाथ धोने लगी, पाप धोने लगी, मस्तक
पहिला वर्ग का पहिला अध्ययन 4280
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