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षष्टांङ्ग ज्ञताधर्मकथा का द्वितीय श्रुतस्कंध 48
समगं भगवं महावीरं वंदति गमंसति वंदित्ता नमसित्ता एवं क्यासी-कालिएणं भंते ! देवीए सा दिवा देविड्डी ३ कहिंगया ? कूडागारसाला दिटुंतो ॥९॥ अहोणं भंते ! कालीदेवी महिद्विया सइज्जुया कालिएणं भंते! देवीए सा दिवा देवीडी ३ किण्णालडा किण्णापत्ता किण्णा अभिसामण्णागया ? एवं जहा सूरियाभस्स जाव एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इंहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे आमलकप्पा णामं णयरी होत्था वण्णओ ॥ अबसालवणे चेइए,
जियसत्तूराया ॥१०॥ तत्थणं आमलकप्पाए जयराए कालेणाणं गाहावती होत्या स्वामी श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को बंदना नमस्कार करके पेमा बोली कि अहो भगवन् ! काली देवीकी यह दाव्य देवऋद्धि कहां गई? यहां उत्तरमें कूटाकारशालाका दृष्टान्त जानना ॥ ९॥ अहो भगवन् ! मैं काली देवी महा ऋद्धिवाली व महातिवाली है ! अहो भगवन् ! काली देवी को ऐमी दीव्य देव द 41
से प्राप्त हुई ? यो जैसे मूर्याभ का वर्णन किया वैसे ही कहना. यावत् अहो गौतम ! उस कालं उस समय में इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में आमलकम्पा नामक नगरी थी. उम की बाहिर अम्बशाल नामक । उद्यान था. जितशत्रु राजा राज्य करता था. ।। १० ।। उस अमल कम्पा नगरी में काल नामक गाथा..
पहिला वर्ग का पहिला
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