________________
७३९
40 षष्टांग व साधर्मकया का प्रथम श्रुतस्कंध 48m
भया पासादिया दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा। तीसेणं पुडरीगिणीए णयरीए उत्तर पुरथिमे दिसीभाए णलिणीवणे ामं उजाणे होत्था वण्णओ ॥ २ ॥ तीसेणं पुंडरी. गिणीए रायहाणीए महापउमेणामं राया होत्था॥ तस्सणं पउमावती णाम देवी होत्था तस्सणं महापउमस्स रण्णो पुत्ता पउमावतीए देवीए अत्तया दुवे कुमारा होत्था तंजहा पुंडरीय, कंडरीय, सकुमाल पाणिपाया, पुंडरीएजुबराया ॥ ३ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मषोसार्थरा' पंचहि अणगार सएहि साई सपरिउडे पुवाणुपधि चरमाणा जाव णलिणीवणे उजाणे तेणेव समोसढे ॥ महापउमेराया णिग्गए, धम्मं सोचा, पुंडरीयं रजे ठावेत्ता, पाइए पुंडीर प्रत्यक्ष देवलोक समान प्रासादिक, दर्शनीय, अभिरूप व प्रतिरूप है. उसकी ईशानकून में नलिनीवन । नामक उद्यान है ॥ २ ॥ उन पुंडरिकिनी राज्यधानी में महापन नामक राजा था
उस को पद्मावती नामक देवी थी. उस महापन राजा को पद्मावनी रानी से दो पुत्र +हुए थे जिन के नाप-पुंडरीक व कंडरीक. सुकोमल हस्त पांववाले थे. उन में पुंडरीक युवराजा या ॥३
उम काल उम समय में धर्मघोष स्थविर पांचसो अनगार की साथ परबरे हुवे पूर्गनुपूर्वी चलते ग्रामानुग्राम विचरते यावत् नलिनीवन उद्यान में पधारे. वहां पझराजा नोकला. धर्म मुनकर पुंडरीक को।
पुंडरीक कंडरीक का वत्रीसमा अध्ययन 41
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org