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________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी " अदरसामते एगं मई गहणं अणुप्यविसति २त्ता दिवसं खमाणा चिटुंति ॥ २३ ॥ ततणं से चिलाए चोर सेणावती अडरत्त कालं समयंसि निसंत पडिनिसंत पचहिं चोर सएहिं सहिं माइयगोमुहीहिं फलएहिं जाव मृतियाहिं ऊरूघंटिहिया जेणेव ७२४ रायगिहे पुरच्छिमिल्ले दुवार तेणेव उवागच्छइ २त्ता उदगवत्थि परामुसहरसा चोक्खो आयंत तालुग्घाडणिविजं आवाहेइ, रामागहस्स दुवार कवाडे उदएणं अच्छोडेतिरमा कवाडं विहाडतिरत्ता रायगिहनयरं अणुप्पविमति २त्ता महया २ सदेणं उग्घसमाण एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुपिया ! चिलाएणामं धार सेणावई बचाहि चोर सएहिं साई सीहगुहाता चोर पल्लीओ इहं हवमागए, धण्णस्स सत्यवाहस्स. गिह घाउकामे; तं जेणं गवियाए माउपाए दुई पाउंकामे सेणंणिग्गओ ॥ २३ ॥ अर्थ रात्रि का समय हुवा तब चिशत चोर अपने पांच सो चोरों की मा गोमुखी वगैरह | शस्त्रों लेकर रामगृह नगर से पूर्व दिशा के द्वार की पास आया. वहां पानी की मशकबी. उसमें से स्वच्छ पानी को अंजली भरकर ताला खोलने की विद्या आराधन करके उस पर छोटी और द्वार खोले. फीर राजगृह नगर में प्रवेश कर बडे २ शब्दों में बोलने लगे कि अहो देवानुप्रिय! चिलात चोर सेनापति पांच मो चोरों की साथ सिंहगुफा नायक चौरपल्ली से पहां आया है. वर धना सार्थवाहा प्रकाशक-राजाबहादुर काळा मुखदवमहायजी ज्वालाप्रसादनी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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