________________
सत्र
। अनुवादक-पालब्रह्मचारी पुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
चोरसेणावती रायगिहस्स दाहिण पुरथिमेणं जणवयं बहुहिं गामघाएहिय, नगरपाएहिय गोग्गहणाहय, बदिग्गहणेहिय, पंथकुटणेहिय खत्तखणणेहिय उवीलेमाण, विहंसेमाण णित्थाणं गिद्धणकरेमाणेविहरति।।१४॥त तेणं से चिलाए दास चेडगे रायगिहे पयरे बहुहिं अत्थाभिसंकीहिय, चोराभिसंकीहिय, दाराभिसंकीहिय, धणिएहिय जूइकरहिय, परब्भवमाणे २ रायगिहातो नमराओ णिग्गच्छति २त्ता जेणेव सिंहगुहाए चोरपल्लीए तेणेव उवागच्छति, २त्ता विजयं चोर सेणावर्ति उपसंपजित्ताणं विहरति ॥१५॥ततेणं
से चिलाए दासचेडे विजयस्स चोर सेणावइस्स अग्ग असिलटिग्गाहे जाएयावि करता हुवा, नगर की घान करता हुवा, गवादि पशू का हरन करता हुवा, मनुष्यों को बंधन में बांधता हुवा, पथिक जनों को लूटता हुवा, खात दे चोरी करता हुवा, दुःख उत्पन्न करता हुवा, विध्वंस का हुवाव निर्धन करता हुवा विचरता था ॥ १४ ॥ अब वह चिलात दास चेठक को धन चोरनेवाला चोरों में मिला हुग जान, पर स्त्री का गमन करनेवाला, दरिद्री व द्यूतखेलनेवाला जानकर बहुत को पराभव पाया हुवा राजगृह नगर में से निकालकर सिंहगुफा नामक चोर पल्ली में गया. और वहां विजय चोर को सेनापति मानकर रहने लगा ॥ १५ ॥ वह चिलात दासचे
प्रकाशक सजावहादुर लालासुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी
m
mmmmmmmmmmm
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org