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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
पोयथाहणेणं उगाहह ते अस्थियाइत्थ केइते कहिवि अच्छेरए दिट्टपुटवे?॥ ततेणं ते सजातात्रगणयमा कणगऊरावं..एवं क्यासी-एवं खलु, अम्हे . देवाणुप्पिया ! इहेवहत्यिसीसेनयरे परिवसामो संचव जाव कालिगादीवं तेणं संवढा : तत्थणं बहवे हिरणगरेय जाय बहचे तत्थ आमे, किं ते हरिरेणु जाब अणेमाई जोयणाइ . उन्भमंति ॥ तएणं सामी ! अम्हेहि कालिय दीवे ते आसा अत्थेरए दिट्ठपुचे.. ॥ १२ ॥ ततेणं से कणगकेऊराया तेसिं संजत्ताणं वाणियाण: अतिए एयमढे सांचा निप्तम्म संजत्तए एवं बयासी-गच्छहणं तुब्भे देवाणुप्पिया ! मम कोडुतो किसी स्थ न तुम को आश्चर्य उत्पन्न करे पैसी कोई-वस्तु देखी. ? तब वे सांयात्रिक वणिकों बोलने लगे कि हम यहां हस्तिशीर्ष नगर में रहते हैं. यहां से जहाज भरकर हम लवण समुद्र में प्रयास करने ।
को नित्र ले.. मार्म में प्रतिकूल वायु से दिशाभूढ हम करमये, अंत में कालिक द्वीप में पहुंचे. वहां, हमने । जाकीर्ण जाति के नीले वर्णवाले. अश्यों देखे., वे हमको देखकर यावत अनेक योजन दर भग गय. अहो,
स्वामिन् ! हिल ही.उस द्वीप में हमने ऐसी आश्चर्यकारी वस्तु देखो है ॥ १२ ॥ उन लोगों की पास मे रएमा मुनकर वे सांयात्रिक बोलने लगे कि अहो देशनु प्रेग ! तुम मेरे कौटुम्बक पुरुषों को साथ सनाओ ।
wwmayawwwmmmm प्रकाशक-सजावहादरलाला मुखदेवसझवनीवाला प्रसादमी.
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