SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 704
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६९६ 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी पोयथाहणेणं उगाहह ते अस्थियाइत्थ केइते कहिवि अच्छेरए दिट्टपुटवे?॥ ततेणं ते सजातात्रगणयमा कणगऊरावं..एवं क्यासी-एवं खलु, अम्हे . देवाणुप्पिया ! इहेवहत्यिसीसेनयरे परिवसामो संचव जाव कालिगादीवं तेणं संवढा : तत्थणं बहवे हिरणगरेय जाय बहचे तत्थ आमे, किं ते हरिरेणु जाब अणेमाई जोयणाइ . उन्भमंति ॥ तएणं सामी ! अम्हेहि कालिय दीवे ते आसा अत्थेरए दिट्ठपुचे.. ॥ १२ ॥ ततेणं से कणगकेऊराया तेसिं संजत्ताणं वाणियाण: अतिए एयमढे सांचा निप्तम्म संजत्तए एवं बयासी-गच्छहणं तुब्भे देवाणुप्पिया ! मम कोडुतो किसी स्थ न तुम को आश्चर्य उत्पन्न करे पैसी कोई-वस्तु देखी. ? तब वे सांयात्रिक वणिकों बोलने लगे कि हम यहां हस्तिशीर्ष नगर में रहते हैं. यहां से जहाज भरकर हम लवण समुद्र में प्रयास करने । को नित्र ले.. मार्म में प्रतिकूल वायु से दिशाभूढ हम करमये, अंत में कालिक द्वीप में पहुंचे. वहां, हमने । जाकीर्ण जाति के नीले वर्णवाले. अश्यों देखे., वे हमको देखकर यावत अनेक योजन दर भग गय. अहो, स्वामिन् ! हिल ही.उस द्वीप में हमने ऐसी आश्चर्यकारी वस्तु देखो है ॥ १२ ॥ उन लोगों की पास मे रएमा मुनकर वे सांयात्रिक बोलने लगे कि अहो देशनु प्रेग ! तुम मेरे कौटुम्बक पुरुषों को साथ सनाओ । wwmayawwwmmmm प्रकाशक-सजावहादरलाला मुखदेवसझवनीवाला प्रसादमी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy