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________________ 488 nwwwmwww पष्टमांग ज्ञाताधर्म कथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध जामेवदिस पाउन्भए तामेवदिसि पडिगए ॥ ६५ ॥ तएणं साधारिणीदेवी तंसि अकाल दोहलंसि विणियांस सम्माणिय दोहला, तस्स गब्भस्स अणुकपणट्टाए-- जयचिट्ठइ, जयंआरूइ, जयंसुवइ, आहारंपियणंआहारेमाणी-णाइतितं, गाइकडुयं, णाइकसायं. णाइअंबिलं, णाइमहुरं, जं तस्सगम्भस्स हियमियं पत्यं तं देसेय कालेय आहाराहारेमाणी; जाइचिंतं, णाइसोयं, गाइमोहं, गाइभयं, गाइपरित्तासं ववगचिंतासोयमोहभयपरितासा उदुभयमाण सुहेहिं भोयणच्छायण गंधमलालंकार हारेहिं तंगभं सुहंसुहेणं परिवहइ ॥ ६५ ॥ तएणं सा धारिणी देवी गवण्हं मासाणं की शोभा का साहरन कर अपने स्थान पीछा चला गया ॥ ६४ ॥ अप धारणी देवी को अकाल मेघ का दोहल पूर्ण हुए पीछे गर्भ की अनुकंपा के लिये वह यत्ना पूर्वक खडी रहने लगी, यत्ना पूर्वक बैठने लगी व वरना पूर्वक सोने लगी. आहार करने में भी बहुत तिक्त, कटुक, कषाय का, अम्बट व मधुर रस का आहार नहीं करने लगी. परंतु देश व काल जानकर जो गर्भ को पथ्य व हितकारी आहार होने का माहार करने लगी. भति चिंता, शोक, मोह भय व त्रासवाले कार्य नहीं करने से चिंतातिक्त, योह, भय व त्रास रहित होकर सुख पूर्वक भोजन,छाया,गंध,माला व अलेकारों सहित सुख पूर्वक गर्भ का निर्वाह करने लगी ॥६५॥भव धारणी देवी को सवानव मास और साडीसात अहोरानि मातपूर्ण हुए पीछे बर्ष रात्रि के समय में उत्क्षिप्त (मेषकुमार ) को प्रथम अध्ययन । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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