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पष्टद्रज्ञानाधर्मकथा का प्रथम श्रतस्कन्ध
वासुदेवा वा उप्पजिंसुवा उप्पजेतिवा उप्पजिस्सवा,तं एवं खलु कपिलवासुदेवा ! जंबु द्दीवातो भारहातो वासाओ हथिणाउराओ जगराओ पंडुस्सरण्णासुण्हा पंचण्हं पंडवाणं भारिया दोवतीदेवी तव पउमणाभस्सरण्णो पुवसंगतिए देवेणं अमरकंक णयरिं साहरिया, ततेणं से कण्हवासुदेवे पंचहिं पंडवहिं सहिं अटुपिछ छहिरहे अमरकंकं रायहाणि दोवतीएदेवीएकूवे हब्बमागए ॥ ततेणं तस्स कण्हवासुदेवस्स पउमणाभेणं रण्णा साई संगाम संगामेमाणस्स अयंसंखसद्दे तवमूहबायाव वियं भवति ॥ ततेणं से कपिले वासुदेवे मुणिसुब्वयं वदति णमंसति वंदित्सा है, होता नहीं है व होगा भी नहीं कि एक ही क्षेत्र में एकयुग में व एक समय में दो अरिहंत, दो चक्रवर्ती, दो बलदेव व दो वासुदेव उत्पन्न होवे. अहो कपिल वासुदेव ! जम्बूद्वीप के मरत क्षेत्र के इस्तिनापुर नगर में पाण्डु राजा की पुत्रवधू व पांच पांडव की स्त्रो द्रौपदी देवी का तेग पद्मनाभ राजा अपने पूर्व संगति वाल देव से साहरण कराकर अपरका नगरी में लाया था. इस में कृष्ण वासुदेव पांच पांडवों व उन के छ रथ लेकर अमरकंका नगरी में द्रौपदी की साहाय के लिये आये थे. पद्मनाभ राजा की साथ कृष्णवासुदेवको जब संग्राम हुवा उस वक्त किया हुवा यह शंखका नाद है. यह तेरे शंख- नाद
48+ द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन +in
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