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8+ पखंड ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्वन्ध 46+
4. अणुपत्रिप्ताहि २त्ता पउमणाभस्सरण्णो बामेण पाएणं पायपढिं अवघमित्ता कंतग्गगं
लेहिपणामेहि रत्ता तिवलियं भिउर्डि णिडाले साहहु आसुरुत्ते रुटे कुविए चंडेधिए एवं क्याहि-हं भो पउमणाहा!अपत्थिय पत्थिया दुरंतपतलक्खणा होणपुन्ना चाउद्दस सिरि हिरिधितिकित्ति परिवजिया अज ण भवसि-किन्न तुमं ग यागाप्ति कण्हरस वासुदेवस्म भागिणी दोवतिदेवि इहं हन्त्रमाणीए तं एयमविगए पञ्चप्पिणाहिणं तमं दावइदेवि कण्हस्स वासुदेवरस अहवा चणं जुद्ध सज्जाणिग्गच्छाहि एसणं कण्हेवासुदेवे पंचहि
पउहि सद्धिं अप्पछट्टे दोवतीर देवीए कूवं हवमागए ॥ १६५ ॥ नतेणं से बांग पांबसे पद्मनाभ राजाकी पाद पीठिका को ठोकर मारकर भालाकी अणी से लख देकर ललाट में विलि चडाकर आसरक्त, रुष्ट, कुपेन व चंडवनकर एसा कहो ओ पद्मनाभ ! अप्रार्थित जो मृत्यु उस की प्रार्थना करने वाला, दूरंत प्रांत लक्षण वाला, हीन पुण्या, चतुर्दशी का. जन्म लेने वाला, श्री, हा ऋद्धी कतिम रहित नू आन नहीं रहेगा. तू नहीं जानता है कि कृष्णवासुदव की भगिनी दंपदी देवीको न यहां लाया है. अब दू उसे कृष्ण वासुदेव को शघ्र ही पीछी दे नहीं तो युद्ध के लिये मज हो. यहां पांच पांडवो की माय कृष्ण वामदेव उस की साहाय के लिये आये हैं. ॥ १.३५ ॥ कृष्ण वासुदेव का
+ ट्रैपदी का सोलहवा अध्ययन
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