SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * सविज्जुय पंचवण्ण मेहणिणा, उवसोभिया दिव्व पाउससिरी विउब्विया, तंविणऊणं मम चल्लमाउया धारिणीदेवी अकालदोहलं ॥ ५३ ॥ तएणं से सेणिएराया अभय कुमारस्स अंतिए एयमद्रं सोचाणिसम्म हट्टतुटू कोडुविय पुरिसे सहावेइ २ ता, एवं वयासी-खिप्पामेव भादेवाणुप्दिया ! रायगिहंणयरं सिंघाढगतियचउक्कचच्चर आसित्तसित्त जाव सुगंधवरगंधियं गंध टिभूयं करेह कारवेह एयमाणत्तियं पञ्चप्पि. 'णह ॥ ५४ ॥ तएणं कोडंबियपुरिसा जाव पञ्चप्पिणति ॥ ५५ ॥ तएणं सेणिए. राया दोच्चंपि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो हेवाणुप्पिया! सहित पांच वर्ण के मेघ से मुशोभित दीव्य वर्षा ऋतु का वैक्रेय कीया है. इस से मेरी छोटी माता का अकाल मेघ का दोहल पूर्ण होगा ॥ ५३ ॥ अभय कुमार की पास ऐसा मुनकर अंणिक राजा हृष्ट तुष्ट हुए और कौटुम्पिक पुरुषों को बोलाकर ऐमा बोले-अहो देवानुप्रिय ! राजगृह नगर के शृंगाटक, त्रिक, चौक राजमार्ग वगैरह को सुगंधित पानी का छिटकाव करो यावत् सब श्रेष्ठ सुगंधित पदार्थों को गंधवाली बनावो. यह मुझे मेरी आज्ञा पीछी दो ॥ १४ ॥ कौटुम्बिक पुरुषों उक्त कथनानुसार सब करके श्रेणिक राजा को उन की आज्ञा पीछी दे दी ॥ ५५ ॥ फीर श्रेणिक राजाने दूसरी वक्त भी कौटुम्बिक पुरुषों को बोलाकर ऐसा कहा कि अहो देवानुप्रिय! अश्व, गज, रथ व योधा की चतुरंगिनी *.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी* For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy