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अर्थ
4: अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोल सुविज
प्र.म.कखाई विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं वत्थगंध जात्र पडिविसज्जेति ॥ १२१ ॥ ततेां में पंडुराया तेमिं बासुदेव पामोक्खाणं बहुणं रायसहरसाणं करबल जावं एवं त्रयासीएवं खलु देवाणुपिया ! हरियणाउरे गयरे पंचण्डं पंडवाणं दोवतीए देवीए कलाण करे भविस्सति तं तृम्भणं देवाणुप्पिया ! ममं अणुगिरहमाणा अकाल परिहीणं समोसरह । तते वासुदेव पामोक्खा पत्तेय २ जाव पहारेत्थ गमणाए ॥ १२१ ॥ ततेणं से पंडुराधा कोडबिय पुरिसे सहावेति सदावेता एवं वयासी- गच्छद्दणं तुम्भे देवाणुपिया!हत्थिणाउरे जयरे पंचण्डं पंडवाणं पंचपामाथ वर्डिसए करेह, अब्भुग्गय भूसिय वण्णओ जान पडित्रे || तणं ते कोटुंबिय पुरिसा पडिमूर्णेति, जाब काराअलंकार से सत्कार सम्मान देकर यावत् विमर्जित किये || १२१ || अब पांडु राजा वासुदेव प्रमुख बहुम राजाओं को हाथ जोडकर कहने लगा कि अहो देवानुप्रिय : हस्तिनापुर में पांच पांडव व द्रौपदी देवीका कल्याणकारी उत्सव होगा, इस से मेरे पर अनुग्रह करके वहां आप पधारो. वासुदेव प्रमुख सबने वहाँ जाने का प्रयाण किया N ५२१ ॥ पांडु राजाने कौटुम्बिक पुरुषों को वोलाये और कहा अहो देवानुभव ! तुम हस्तिनापुर नगर में जाओ और वहां पांडवों के लिये पांच प्रासादावतंसक बनावो. व ऊंचे आकाशतल को लगे हुवे यावत् प्रतिरूप होवे. कौटुम्बिक पुरुषों ने उन के वचन का
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प्रकाशक- राजा बहादुर लाला सुखदेवमहाथजी यासा
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