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सूत्र
अर्थ
84+ अनुवाहक वाह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषि
देवती रायबर कन्ना अन्नयाकयाइ अंतउरियाओ पहायं जात्र विभूसियं करेति २ दुपयस्सरन्नो पायबंदियं पेसंति ॥ ९२ ॥ ततेण सा दोवती जेणेव दुपएराया तेणेव उवागच्छइ २ तादुपयस्मरन्ना पायग्गहणं करेंति ॥ तर्तेणं मे दुबएराया दोत्रर्तिदारिय अंकणित्रे सेति, अंकेणिवेसित्ता दोबतीए रायवर कन्नास्त रूत्रेणय जाणेणय लवण जाव विम्हए, दोवइ रायवरन्नं, एवं वयासी - जस्सणं अहं तुमं पुत्ता ! रायरसवा जुबरायरसवा भाग्यित्ताए सयंमंत्र दलयिस्सामि, तत्थणं तुमं सुहियावा दुखियात्रा भवेजाति, तरणं मम जावज्जीवाए हिययदा भविस्सति, ततेणं अहं पुत्ता ! अजयाएं सयंवरंयामि, अजपाएणं तुमं दिन्नसयं वराजणं तुमं सयमेत्र रायंत्रा यावत् विभुषित बनकर अंते पुरमें से नीकलकर दुयद राजाके पात्र चंदन करने आई ॥९२शावह द्रोपदी द्रुपद राजा की पास जाकर उन के पत्र में पांड. द्रुपद राजाने ट्रैौपदी को अपनी गोद में बैठाकर द्रौपदी के रूप, यौवन लावण्य यावत् विस्मय हुवा. और उस को ऐसा कहा कि अहो पुत्री ! मैं तेरे को जिम किसी राजा या युवराज को दूंगा. तां तू सुखी अथवा दुःखी होगा. इससे मेरा हृहय जीवन पर्यन जलता रहेगा इसलिये अहो पत्री ! आज सेहा तेरे लिये मैं स्वयंवरकी रचना करता हूं मैं अब तुझे स्वयंवर में ही दूंगा जिस से तू तेरी इच्छानुसार राजा अथवा युवराजाको वरेगी और वहीं तेरा भतीर हाब्रेगा. यों
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* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालामसादजी
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