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सूत्र
अर्थ
* पांङ्ग ज्ञ ताधर्मकथा का प्रथम स्कंध
गाल गंध कासाइए गायाई लूहेति २ इसगलक्खण पडगसाडयं परिहेति, सन्त्रालंकार विभूसियं करेइ २ चा विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं भोयावेति २ सागरदत्तस्स उवर्णेति २ ॥ ६६ ॥ ततेणं से सागरदन्ते सत्थवाहसुकुमालियं दारियं हायं जात्रालंकार भूसियं करेत्ता तं दमगपुरिसं एवं वयासी-एसणं देवा ! सम धूपा इट्ठा एयणं अहं तब भारियन्त्ताए दलयामि, भदयाए भद्दतो भवेज्जासि ॥ ६७ ॥ ततंग से दमग पुग्ने सागरदरस्स एयमट्ठ पडिमुणेति २ ता सुकुमालियाए दारियाए साई वासघरं अणुपवसति, सुकुमालियाए, दारियाए सा तलिमसि विज्जइ ॥ ६८ ॥ तसेणं से दमनपुरिसे सुमालियात इमेयारूचं
( पक्ष्प समान सुकोमल सुगंधिक कापाधिक वस्त्रों से मात्र स्वच्छ किया. हंस ममान श्वेत वस्त्र पहनाया, सव ( अलंकार से विभूषित किया और विपुल अनादि जीमाकर सागग्दत्त की पास लाया ॥ ६६ ॥ तब { सागरदत्तने सुकुपालिका पुत्री को स्नान करा कर यावत् सब अलंकार से विभूषित कराकर दरिद्री पुरुष
को ऐसा कहा अहो देवानुप्रिय ! यह मेरी पुत्री इष्ट है. मैं इसे तेरी भार्या बनाता हूं. भाद्रेका का कल्याण डांगा. ॥ ६७ ॥ उम्र दरिद्री पुरुषने सागरदत्त की यह बात सुनी और सुकुमालिका की साथ उस के आवास गृह में गया. और वहां उस की साथ पलंगपर सोया. ॥ ६८ ॥ उस दरिद्रीने सुकुनालिका अंग
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* द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन 4
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