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+ षष्टांगताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्मन्ध htt+
अलंकारिय कम्नं करेह २ त्ता हायं कयबीलकम्मं जाव सम्व लंकार विभूमियं करेह २ त्ता मणणं अमणं पाणं खाइमं साइमं भोयावेह २ न्ता मम अतियं उवणेह ॥ ६३ ॥ ततेणं के डुबिय पुरिसा जाव पंडिसुगति २ ता जेणेव से दमगपुरिसे तेणेव उवागच्छइ तं दमगं अमणं पाणं खाइमं साइमं उवलोभति २ सयंगेहं अणुपविसति तखंड मल्लगं खंडघडगंच तस्स दमगपुरिसस्स एगते एडंति ॥ ६४ ॥ ततेणं से दमगे तसि खंडमल्लगंसिया खंडघडगसिया एडिजमाणास महया २ संदणं
आरसतिए॥ ६५ ॥ ततेणं से सागरदत्ते सत्यवाहे तस्सदमगपुरिसर तं महया २ का लोभ देकर घर में बोलावो, यहां लाकर उन के फटे हुवे वस्त्र, सराबल व घडे को एकांत में डाल दो, उप को क्षौर कर्म करायो, फोर स्नान कराकर, पालकर्म कराकर यावत् सब अलंकार से विभूषित चनासे. फेर मनोज्ञ अशादि जीमाकर मेरी पास लावो. ॥६३ ॥ कौम्बिक पुरुषोंने यह कथा सुनी।
और उस दरिद्री पुरुष की पाम गये, उस को विपुल अशनादि का लाभ देकर घर प्रवेश करवाया, पार उस के फर हवे पत्र. रावल मिट्टि का घडा एक वज़ डाल दिया.॥ ६४॥ उम दरिद्री स्त्र वगैरह एकांत में डाल देने से बढ २ शब्द स आरहने लगा ॥ ६५ ॥ उस दरिद्री को बढे २ शब्द
पदी का मोलहवा अध्ययन
में
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