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________________ सूत्र अर्थ 44- षष्टां ज्ञ ताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्वन्ध + णिप्पाणं णिच्चटुं जीव विप्पज्जढं पासंति हाहा ! अहो ! अकजो ! ! तिकट्टु; धम्मरुइस्स अपरिणिव्वाणवत्तियं काउसग्गं करेति २ धम्मरुइस्स आयारंभडग गेण्हइ २त्ता जेणेव धर्मघोसा थेरा तेणेव उवागच्छइ गमनागमणं पडिक्कमति २ एवं बयासी एवं खलु अम्हे तुम्भं अंतियातो पडिणिक्खममाणा सुभूमिभागस्म उज्जाणस्स परिपेरं तणं धम्मरुइस्स अणगारस्स सव्त्र आत्र करेमाणा जेणेवं थंडिल्ले नेणेव उवागच्छइ २ जाव इहं हन्यमागया । तं कालगणं भंते ! धम्मरुई अणगारे इमे से आयार भंडए ॥ २० ॥ ततेणं धम्मघोसा थेरा पुञ्चगए उवओगं गच्छति उनओगं अनगार के निर्वाण का कायोत्सर्ग किया. उन के भंडोपकरण लेकर धर्मघोष स्थविर की पास आये, वहां गमनागमन का प्रतिक्रमण किया, फोर कहने लगे हम आपकी पास से नीकल कर सुभूमिभाग उद्यान की आमपास चारों तरफ घर्मरु चे अनगार की गवेषणा करते हुए स्थंडिल भूमि में गये और वहां धर्माचे अनगार का शरीर प्राण रहित निश्चेष्ट व जीव रहित देखा. हमने उन के निर्वाण का कायोत्सर्ग किया फोर वहां से उन के भंडे पकरण लेकर यहां आप की पास आये हैं, अहां पूज्य धर्मरुचि अनगार कालगत ब हुए हैं. उन के यह भंडोपकरण हैं ॥ तब धर्मघोष स्थविर ने पूर्वगत उपयोग लगाया, उपयोग २० ॥ For Personal & Private Use Only Jain Education International 4 द्रौपदी का सोलहवा अध्ययत 483+ ५७१ www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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