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तरणं चयं चइत्ता महाविदेहवासे सिजिहिति जाव अंतकरेहिइ॥१७॥एवं खल जंबु ! ममणणं भगवया महावीरगं जाव संपत्तेणं पण्णरसमस्स णायज्झयणस्म अयम? पण्णत्ते ॥ तिबेमि ॥ १५ ॥ गाथा-चपाइव मणुगई, धण्णुव्व भयबंजिणोदइक्कारसो अहिछत्ता णयरि समं, इह णिव्याणं मुणेयव्वं ॥ १ ॥ घोसणयाइवतित्थंकरस्स मिवमग्गदेसण, महग्धं चरगाइजोव इत्थं सिव सुहकामाजिया ॥ २ ॥ बहवे
दिफलाइव्वइ इहंसिवपहपडिबण्णगाणं, विसयाओ तभक्खणाओ मरणं जहा तह विसएहिं संसारो ॥ ३ ॥ तव्वजणेण जह इट्टपुरगमो विसायावजणेण तहा परमाणंद
णिबंधण सिवपुरगमणं मुणेयत्वं ॥ ४ ॥ पन्नरसमं णायज्झयणं सम्मत्तं ॥ १५ ॥+ देवत पने उत्पन्न हुआ. वहां से चरकर महाविदह क्षेत्र में स झेंगे, बुझेग व सब दुरों का अंत करेंगे ॥१७॥%2 अहो अम्बू ! श्री श्रमण भगवंत महावीरने ज्ञाता सूत्र के पन्नात्रा अध्ययन का यह अर्थ कहा. ॥ १५ ॥ उपमंहार-चपा नगरी जैपमय गति, धन्ना सार्थवाह जैसे जिन प्ररूपित अनुपम रस और अहिछत्रा। नमरी जैपे निर्वाण जानना. ॥१॥ उद्घाषणा जैसे तीर्थकर की शिवमार्ग की देशना, चारकादि जै? मक्ष सुख के कामो जीवों जानना. ॥ २ ॥ बहन नंदीफल जैसै शिवपथ मे विरुद्ध करनेवाले विषयों हैं.14
से नंदीफल खाने में मृत्यु होता है वैसे ही विषय सेवन मे संसर को को बृद्धि हाती है ॥३॥
नंदी फल वृक्ष का त्याग करनेवाले इष्टकारी स्थान पर पहूंन गये पैसे ही विषय त्याग से परमानंद रूप. 14बंधन सहित मोक्ष मार्ग में गमन करने का जानना ॥४॥ यह ज्ञाता सूत्र का पभरका अध्ययन सपूंण।।१५॥
षष्टजज्ञाताधर्मरथा का प्रथम श्रवन्ध 48
तला पुत्र का च उदहवा अध्ययन 42
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