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वरेमो, तं जइणं जाणासि देवाणुपिया ! जुत्तंबा पत्तंवा सलाहणि अंबा सरिसोवा संजागोवा ता दिजउणं पोटिला दारिया तेयलीपुत्तस्स ता भण देवाणुप्पिया ! किं दलामो सुक्कं ॥ तएणं कलाएसु मूसियार दारए ते अभितरटाणिज्जे पुरिसे एवं वयासी एसचेव देवाणुप्पिया ! मम के जण तेयलीपत्ते मम दारिया णिमित्तेणं अणुग्गहं करिंति, ते अभितरटाणिज्जे पुरिसे विउलं असणं पण खाइमं साइमं पुप्फ वत्थ जाव मल्लालंकारेणं सक्क रेइ सम्माणेइ पडीवसज्जेइ ॥ ७ ॥ तएणं ते अब्तिरदाणिज्जा
पुरिसा कलायस्स मूसियारदाररस गिहाओ पडिणिक्खमइ जेणेव तयर्ल.पुते अमञ्च कन्या को तेतली पुत्र आमात्य की साथ विवाह संबंध कराने को आय हैं. अहो देवानुपिया तुम को योग्य, लगे, प्रीती होवे, इम में तुमारी श्लागा होवे अथवा ममान : य ग होवे ऐसा तुम याद जानते हो तो तुम्हारी कन्या नंतली पुत्र आमात्य के दो. अहो देवानुप्रिय ! तुम को क्या शक्ल [ द्रव्य दे मो भी कहो. नर वह कलाद सुवर्णकार बला कि अहवानुप्रिय ! मेनी पुत्री के निमित्त से तेतली पुत्र आमात्य मेरेपर जो अनुग्रह करत हैं वही परा शुक्ल है. यों कहकर उन पुरुषों को पिपुल अशन,
पार, खादिम म नादिप, पुष्प, वस्त्र. यावत् माला अलंकार से सरकार सन्मान देकर विसर्जित किये ॥७॥ 17 अब वे पुरुषों कलाद सुर्ण कार के वहां से नीकल कर तेतली पुत्र आमात्य की पास आये और उन को
'दक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिना -
कराजाबहादूर लाला सुखदवस हायजा ज्वालाप्रसादजी.
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