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नबारकबहानाचा मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सएणं कालमाणि पासइ २ त्ता, पोटिलाए दारियाए रूवेणय ३ जाब अझोवबन्ने कोटुबिय पुरिसे सद्दावेति २ त्ता एवं वयासी रमणं देवाणुप्पिया ! कस्स दारिया किं गामधेनावा ? ॥ ततेणं कोटुबियपुरिसे तेयलीपुत्तं एवं वयासी-एणं ५१३ सामी ! कलायस्त मूसियाररस धूया भदाए अत्तया पोटिला णामं दारिया रूवणं जाव सरीरा ॥ ५ ॥ ततेणं से तेयलीपुत्ते आमवाहणियाओ पडिणियत्ते समाणे अभितर ठाणिजे पुरिसे सदावेइ २ ता एवं वयासी-गच्छहणं तुम्भे देवाणुप्पिया । कलाय मूसियारस्त धयं भदाए अतयं पोटैलं दारियं मम भारियताए वरेह ॥ देखी. उसे देखकर वह उस कन्या के रूप में . मोहिन हो गया और अपने कौटुम्पिक पुरुषों को बोलाकर ऐसा कहा ओ देवानुधिय! यह किस की कन्या है और इम का नाम क्या है ? तब कौटुम्बक
तेती पुत्र को एनेवले अहा सामिन ! यह कल द सुवर्णकार की पुत्री व भद्रा भार्या श्री पासना पहिला नाम की कन्या है ॥ ५ ॥ अश्व क्रीडा करके अपने स्थान आये पीछे तेतली पत्रो गत कार्य करनेवाले पुरुषों को बोलाये और कहा कि अहो देवानप्रिय ! कलाद सुवर्णकर की। त्री व भद्रा भार्या को आतदा पोट्टला नामक कन्या मेरी साथ विवाह करे वैसा करो. तब वे गुप्ता
प्रकाशक-राजाबहादूर लाला मुखदवसहायजा ज्वालाप्रसादिजे.
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