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- पटांड ज्ञाताधर्मकथाका प्रथम श्रूनेस्कंध 4762
ज्जीगर छटुंछट्टेणं अणिक्खित्ते तोकम्मेणं अप्पाणं भावमाणस्त विहरित्तए । छगुस्स चियणं पारणगति कप्पति गंदाए पोक्खरिणीए परिपेरत सु फा एवं पहाणोदएणं उम्महणाई लालियाहिय वित्ति कप्पेमाणरस विहरित्तए इमयारूवं अभिगाई अभिागण्हति २ ता जावजीवाए छटुंछट्टेणं जाव विहरति ॥ ३३ ॥ तेणं कालेण तेणं समएण अहं गायमा ! जाव गुणसिलए समोसते, परिसा जिग्गया ॥३४॥ ततेण
दाए पाक्खरिणीए बहुजणो अण्णमन्न जाव समण भगवं महावीरं जाव-इहेव गुणसिलए चेइए समोसढे तं गच्छामोण देवाणुपिया ! समणं भगवं महावीरं वदामो नमसामी, छठ २ के तप से आत्मा को भावते हुरे विचरना मुझे कसता है. और छठ के पारण के दिन नंदा पुष्करणी की चारों तरफ लोगोंने खस किया हुआ फ सुक पानी व उन के शरीर पर स निकाला हुवा मैल लेकर आनीविका करना सता है. इस तरह जायजीव पर्यंत अभिग्रह धारण कर ७४२ के तप कर्म से आत्मा को भावते हुवे विचरन लगा ॥ ३३ ॥ उस काल उस समय में
हो गौतम : में राजगृही नगरी में आया, यावत् परिषदा पीठी गई। ३४ ॥ उस समय नंदा पुष्क रणी में बहुत लोगों परसर ऐसा वार्तालाप करने लगे कि यहां गुणशील उद्यान में श्री श्रण भगवन्त है महावीर स्व.गी पध.रे.इए हैं. इस से अहो देवानुमय ! श्री श्रमण भगवंत यहावीर स्वामी को चंदना
नद्रमाणधार श्रष्ठा का तरहवा अध्ययन 49.
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