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+8+ षष्टांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
१. सहस्सपत्त पुष्फफलकेसरोक्वेया पम्हिस्थभमंतमत्तछप्पयअगसउणगण मिहुण ..विश्थिरिय सहइ महुरसरण्णाइया पासाइयणिया दरिसाणया अभिरूवा पडिया
॥ १४ ॥ ततेणं से गंदे मणियार सेट्टी. णंद पोवारणीते चउहसि ‘चत्तरि वणसंडे रोवावति ॥ ततेणं ते वणसंडा अणुपुत्रेणं सारक्खिजमाणा, संगोविजमाणा, संवड्डिजमाणाय वणसंडा जाया-किण्हा जाब निउरंबंभूया, पत्तिया पुफिया जाव उबसोभेमाणा चिट्ठति ॥ १५ ॥ ततेणं गंदे पुरथिमिल्ले वणसंडे एगं मह चित्तसभं करावेति २, अणेग खंभसय सण्णिविटुं पासा दिया दरिसणीया लिये परिभ्रमण करते हुवे भ्रमरों व पक्षियों के युगल पधुर शब्दो करते थे. और भी वह प्रासादिक, दर्शनीय, अभिरूप व प्रतिरूप थी. ॥ १४ ॥ नेदमणियारने उस वावड़ी के चारों दिशी में चार घनखण्ड रोपे थे, उन की रक्षा व गोपन करते हुने धनखंड पन गये. वे कृष्ण यावत् निकुरव भून थे. पत्र पुष्प से यावत् शःभायमान थे. ॥ १५ ॥ उम नंदणियारने पूर्व दिशा के वनखंड में एक चित्रसभा पनगाइ वह अनेक 4 स्तंभ वाली प्रामादिक, दर्शनीय अभिरूप प प्रतिरूप थी. उम में बहुत कृष्ण वर्ण नाले यावत् शुक्ल वर्ण वाले काय कर्म, ( काय की पूतीयों ) वन कर्म (वस्त्र की पूनलीयों ) मूत्र मे गंयकर, लपेट कर, पुष्प
नंदपणपार श्रेष्ठ का तेरहवा अध्ययन 48
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