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________________ ४९१ जाव पभिइओ जेसिणं रायगिहस्स बहिया बहूओ वावीतो पोक्खरिपातो जाव सर.२ . पंतिओ, जत्थणं बहुजणो हतिय पियतिय पाणियंच संवहति ॥ तं सेयं खलु मम कल्लं पाउड्भवाए, सेणियंराय आपुच्छित्ता रायगिहस्सबहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीमाए वेभारपत्रयस्म अदूरसामंते, वत्थुपाडग रोइयंसि भूमिभागसि जाव गंदपोक्खरणि खणावित्तए तिकटु ॥ एवं संपेहेइ २ चा ॥ कल्लं पाउभयाए जाव पोसहं पारेति पोमहं पारेत्ता, हाए कयबल्लि कम्मे, मित्तणाइ जाव संपरिवुड़े महत्थं जाव पाहुडं रायारिहं गिण्हइ २ त्ता जेणेव सेणिए राया तेणेब उवागच्छइ २ ता, जाव पाहुडं और पानी पीते हैं उन लोगों को धन्य है, इस से कल प्रभ त में श्रेणिक राजा को पुछकर राजगृह नगर की बाहिर ईशानकून बेपार पति की पास शिल्पकारों को अनुकुल भूमिभाग में यावत् नंद पुकरणि खोदवाना मुझ श्रेय है, ऐमा र कर दूसरे दिन प्रभात होते यावत् पौषय पाल नमन किया, कोगले किये, पिप जान सहित परवरे हुए महामूल्य वाला पावत् गजा को योग्य नगराणा लेकर श्रेणिक राजा की पास वह नंद मणिभार गया. यात सब नजराणा रख दिया और कहा कि माप की भाषा हो तो राजगृही नगरी की पाहिर भार पर्वत की पास में एक पुष्करणी खोदवाना 40पष्टताधकथा का प्रथम प्रताप - नंद मणिबार श्रेष्टि का तरह अध्ययन - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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