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48+ षष्टाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 48
यागच्छति ॥ ततेणं मल्ली अरहा जियसत्तु पामोक्खे छप्पिरायाणो समुप्पण्णे, जाइ सरणे जाणित्ता गब्भघराणं दाराई विहाडेति ॥ ततेणं तेजियसत्तू पामोक्खा जेणेव । मल्लीअरहा तणेव उवागच्छइ २त्ता ॥ १२७ ॥ ततेणं से महावल्ल पामोक्खा सत्तरिय बालवयं साएगो अभिसमन्नागावि होत्था ॥ १२८ ॥ ततेणं जे मल्ली अरहा तेजियसत्त पामोक्खा छप्पिरायाणो एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पि पा ! अहं संसार भउविग्गे जाव पब्धयामि तं तब्भेणं किं करेह किं वसह जाव किंते भो हियसामत्थे॥
ततेणं जियसतू पामोक्खा छप्पिरायाणो मल्लिं अरहं एवं वयासी जतिअं तुम्भे देवाणुE जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुवा और इस बात को सम्एक प्रकार से जानी. उन को जातिस्मरण ज्ञान
उत्पन्न हुया देख कर पल्लो कुंबरी गर्भ धर के द्वारों खोल दिये. और जित शत्रु प्रमुख छे राजाओं लं नाम अरित की पाम आये ॥ १२७ ॥ पूर्व भव के महाबल प्रमुख साता बालमित्र एकत्रित हुए । १२८ ॥ वहां मल्ली अरिहंतने कहा, अहो देव न प्रयो! मैं संसार भय से उद्विग्न बनी हुई हूं य बत् दीक्षित बनना चाहती हूं इममें तुम्हारी क्या इच्छा है, तुम क्या करोगे, कहां रहोगे ? तब जितशत्रु प्रमुख छ है।।। राजाओं मल्ली अरिहंत को ऐसा वाले, अहो देवान प्रेय ! जब तुम संसार भय से उद्वग्न बनकर यावत् |
श्रीमल्लानाथजी का आठमा अध्ययन 487
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