________________
.
41 अनुावदक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिन
बहुओ दासी चाभी हीलंती जिंदाते खिमाते गरिएंति अप्पेगइया हेरूयालेति अप्पेगइया मुहमकडिया मा करति, अप्पेगइया घडीपाओ करेइ, अप्पगइया तज्जमाणिओ करेति. अप्पेगइया तालेमाणिओ करेति, अप्पगइया णिच्छति।।१.४॥ तएणं सा चोक्खा मद्धिविदह रायवरकण्णाए दास चडियाहिं जव गिरिहि जमाणी हलिजमाणी आसरसा जाब मिमिमि मेमाणी मलु एविदह रायवरक गयाए पउसमावजइ भिसियं गिण्हइ २ त्ना कागतेउराओ पाडनखपइ २ त्ता महिलाओ राय. हाणिआ निगज्छइ २ त्ता पारव्याइया संपरिबुडा जेणेव पचालजणवय जेणेव कंपिल्लपुरणयरे तणव उवागच्छइ २ त्ता कंपिल्ल पुर बहूगं राईसर जाव
• प्रकाशक राजदर लाला सुखदवमहायजी ज्या प्रमजा .
उको अपचेष्टा करनेलगी. कितनी मन्मुख देखकर मारने लगी, कितनीक हपमकरी करने लगी. कितनीक तजना करने लगी, कानीक त ड करने लगी और कितनीक निर्भत्सना करने लगी.॥१०४ामल्ल कुंरी की दासियों व बटयों ने इस प्रकार उ का टीलन निर या त् मीततीकन गारना की जिम में वह चे.क्खा आसुरक्त यावत् मसीआयप नवना हुई पल कुंव के साथ प्रदे ह भावधारन किया और अपा आशन दि ग्रहण कर अंतपुर से नीकल कर दिया नगरी में से नीकलकर अपनी परिव्र निकाओं सथ पांचाल देश के कंपिल पुर नगर में गइ. वहां बहुत रज रजिश्व को दान धर्म व तीर्थाभिषक प्ररूपी
Jain Education Interational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org