________________
सएहिं गेहेहितो पडिणिक्खमइ २ रायगिहस्स मज्झमज्झणं जेणेव सेणियस्स भवण वडिंसगदुवारे तेणेव उवागच्छइ २ एगओमिलयंति २ सेणियस्सरण्णो भवण वडिंसग दुवारेणं अणुपविसंति, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सेणिएराया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता सेणियंरायं जयएणं विजयएणं वहावेइ, सेणिएणं रण्णा अच्चिय बंदिय पूइय माणिय सकारिय सम्माणिय समाणा पत्तेयं २ पुवनत्थेसु भद्दासणासु निसीयंति ॥ २७ ॥ तएणं से सेणिएराया जवणंतरियं धारणिदेविं ठवेइ २ त्ता
पुप्फफल पडिपुण्णहत्थे परेणं विणएणं तेसुमिण पाढए एवं क्यासी-एवं खलु देवाणु-. भावार्थ कीया और मस्तक में हरताल द्रोष वगैरह के सिद्धार्थ चिन्ह कीये. पीछे अपने २ गृह से निकले. नीकल
कर राजगृह नगर की बीच में होते हुवे श्रेणिक राजा का भवनावतंसक द्वार की पास आये. वहां सब
र एकत्रित हुवे. फीर श्रेणिक राजा के भवनावतंसक में प्रवेश कर बाहिर की उपस्थानशाला में श्रेणिक-राजा की पास जाकर उन को जय विजय रूप आशिर्वाद के शब्दों से वधाये. श्रेणिक राजाने भी
उन की अर्चन, पूना, सत्कार सन्मान कर के प्रत्येक को पूर्वोक्त आठ भद्रासनपर बैठाये ॥ २७ ॥ अब 15 पडदे की पीछे धारणी देवी को बैठाकर पुष्प फल से प्रतिपूर्ण हस्तवाला श्रेणिक राजा बहुत विनय सेना
पष्टमांग शाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 48862
मेघकुमार ) का प्रथम अध्ययन 428+
बा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org