SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२६ 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिनी र आभाएगणी २ विहरतिजिहा-पाडबुडि जावे जियतु पंच ला हिवइ।३८ ।तत सामल्लें। विदहरायवर का कोटुंबियपुरेसे सदावति २त्ता एवं वयासी-गच्छहणं तुब्भ तुब्भे देवापापिया ! आसोगणियाए एगंमहं मोहगघरं करेह, अणेगसंभसयसन्निविट्ठ ।। तस्मण मोहणघरस्स बहुमज्झदसभाए छ गम्भघरए करेह, तरसणं गब्भघराण बहुमज्झ देसभाए जालघरं करेह, तरसणं जालघरस्स बहमज्झदेसभाए माणिपाढिय करेह ॥ तवि तहेव जाव पच्चप्पिणति ॥ ३९ ॥ ततेणं सामल्ली मणिपीढियाए उबार अप्पणो सरिस्सिय सरित्तयं सरिसवयं सरिसलावण्ण जोवण्ण गुणोववेयं,कणगमयं मत्थय च्छिाईयं पउमप्पल विचरती थी जिन के नाम-पतिबुद्ध राजा यावत् जीनशत्रु राना पांचाल देश का अधिपति ॥ ३८ ॥ तब उस मल्ली कन्याने कौटुम्बिक पुरुषों को बोल कर ऐसा कहा कि अहो देवानु मव ! तुम अशोक वन में एक बडा मोहनघर वनाको उम में अनेक संभों खडे 'करो, उम मोहन घर के बहुत मध्य भाग में छ गर्भ धरों (गुप्त रहने के कमरे ) पनाको, इन की बीच में छ जालीवाले घर बनावो, उम की बीच में एक मणि पीठिका (चबूतरा) बनावो, इतना करके मुझे मेरी आज्ञा पीछी दो. कौटुम्बक में पुरुषोंने वैस ही किया ॥ ३१ ॥ मल्ली कन्याने उम मणि पीठिका के चबुतरे पर अपने जैसी त्वचा. * लावण्य, वय, लक्षण व गुण वाली एक सुवर्ण की प्रतिमा बनाइ. इस के मस्तक पर पन कपल जैसा प्राक गजबह दर लाला मुखदेवमहायनी वाल.प्रसदनी . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy