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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख ऋषिनी र
आभाएगणी २ विहरतिजिहा-पाडबुडि जावे जियतु पंच ला हिवइ।३८ ।तत सामल्लें। विदहरायवर का कोटुंबियपुरेसे सदावति २त्ता एवं वयासी-गच्छहणं तुब्भ तुब्भे देवापापिया ! आसोगणियाए एगंमहं मोहगघरं करेह, अणेगसंभसयसन्निविट्ठ ।। तस्मण मोहणघरस्स बहुमज्झदसभाए छ गम्भघरए करेह, तरसणं गब्भघराण बहुमज्झ देसभाए जालघरं करेह, तरसणं जालघरस्स बहमज्झदेसभाए माणिपाढिय करेह ॥ तवि तहेव जाव पच्चप्पिणति ॥ ३९ ॥ ततेणं सामल्ली मणिपीढियाए उबार अप्पणो सरिस्सिय
सरित्तयं सरिसवयं सरिसलावण्ण जोवण्ण गुणोववेयं,कणगमयं मत्थय च्छिाईयं पउमप्पल विचरती थी जिन के नाम-पतिबुद्ध राजा यावत् जीनशत्रु राना पांचाल देश का अधिपति ॥ ३८ ॥ तब उस मल्ली कन्याने कौटुम्बिक पुरुषों को बोल कर ऐसा कहा कि अहो देवानु मव ! तुम अशोक वन में एक बडा मोहनघर वनाको उम में अनेक संभों खडे 'करो, उम मोहन घर के बहुत मध्य भाग में छ गर्भ धरों (गुप्त रहने के कमरे ) पनाको, इन की बीच में छ जालीवाले घर बनावो, उम की
बीच में एक मणि पीठिका (चबूतरा) बनावो, इतना करके मुझे मेरी आज्ञा पीछी दो. कौटुम्बक में पुरुषोंने वैस ही किया ॥ ३१ ॥ मल्ली कन्याने उम मणि पीठिका के चबुतरे पर अपने जैसी त्वचा. * लावण्य, वय, लक्षण व गुण वाली एक सुवर्ण की प्रतिमा बनाइ. इस के मस्तक पर पन कपल जैसा
प्राक गजबह दर लाला मुखदेवमहायनी वाल.प्रसदनी .
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