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________________ अर्थ अनुवादक-वालह्मचारी मुनि श्री अमोलक गुगीसतिमं तित्थयरं पयाय ॥ ५३ ॥ तेनं कालेणं तेणं समएणं अहोलोगवत्यव्त्राओं अट्टयदिनाकुमारिए महयरियाओं जहा जंबूदीपणती जमणं सर्व भाणियनं; वरं महिलाए जयरी कुंभरायस् भवणीने पभावती देवीए अभिलाशे, संजीएसवी जाब नंदीसरदीव महिया ॥ ३४ ॥ सागं कुभगया बहुवियति वाणवितर जोइलिय माणि देवातिर जम्मण निषेय जायकम् जाव णाम करणं - जम्हाणं अम्हेंइमाए दारियाए मऊ कम सिमल यणिज्जति डोल विणीते. त होऊग णामेणं हिमी प्रकार की बाधा पंडरी लोक में गजदंता पर्यन के उत्पन्न हुए || ३ || उप काल उन समय में अधे नेवल आठ देवयों चारों दिश व विदिशा से आई. यावत् ५६ कु ६४ इन्द्र जन्म किया. इन का विस्तारपूर्वक वर्णन जम्बूदी पन्नास में किया कैंस यहां जना विशेष में निथला नगरी कमराजा पिता व भावताना पावत् दिश्विर द्वीप में आकर अटाइ महस्व किया वहांतक सब कथन कहन. ।। ३४ ।। बहन भवनपति बाणांतर ज्योतिषीनिक देवाने निकर का जन्म महोत्न किये पीछे कंमराजाने जन्म महोत्सव किया, जन्म कर्म किया यावत् नामक स्थइस वलकाको मतको पुष्प की बनाई हुई मालाओं की Jain Education International For Personal & Private Use Only • प्रकाशक- राजवहादुर लाया मुखदेवसहायजी ज्वालामसादकी ३२४ www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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