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मन
अर्थ
*पष्टांङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुत
डे निजामि ॥ ततेणं से घण्णे सत्थवाहे रोहणियाए सु बहुये सगडि सागई. दाति ॥ ततेणं सारोहिणी सुबहु सगडी सागडं गहाय जेणेव सएगिहे कुलपरे तेणेच उत्रागच्छइ २त्ता कोट्टागारे विहाडेति २त्ता पलेउभिदइ २त्ता सगडी सागडं भरेइ . २ता रायगिहं नपरं मज्झमज्झेणं जेणेव सए गिहे जेणेव धण्गे सत्थवाहे तेणेव उवाडच्छ उबागच्छइ २ न्ता ॥ २५ ॥ ततणं से रायगिहे जयरे सिंघाडग बहुजणो अन्नमन्नस्त एवम इक्खति घण्णेण देण पाया! घण्णेसस्थवाह जस्सणं रोहिणिया मुव्हा, पंचसाल अक्खए सगडे सागडेणं णिजाएइ ॥ ततेणं से सत्या तं पंच
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अतात ! इस कारण से आपके पांच शाली के दाने माडा गाडी से मैं लालूंगी. धन्न सार्थवाहने रोहिणी को गाडेगाडी दिया. रोहिणी उम गाडे गाडी को लेकर अपने पितृ गृह में आइ. कोठागार उप ड कर पल्लों को मंदकर गाड ओ भरकर राजगृही नगरी की बीच में होती हुई अपने गृह धन्ना सार्थवाह { की पास आई. २५ || राजगृह नगर के श्रृंगाटक यावत् राजमार्ग में बहुत मनुष्यों परस्पर ऐसा बोलने लगे कि अहो देवानुमिया ! धजा सार्थवाह को धन्य है. जिस को रोहिणी पुत्रवधूने पांच शाली के दाने के इव गाडेभर शालि पछी देती है. धन्ना सार्थवाह शाली के गाडे देखकर हृष्ट तुष्ट दुबे और
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रोहिणी का साथ अध्ययन
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