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सूत्र
अर्थ
4: अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अकुडिया छडछड्डाणं पूयाणं सालीणं मागहए पत्थर जाए ॥ १३ ॥ ततेणं तं higher derai पत्थए सुडए पक्स्विति २त्ता उपलिंपति २ता लेछिय मुद्दिए करेंति २ कोट्ठागाररस एमसि द्वावेइ रत्ता, संरक्खमाणा संगोचेमाणा विहति ॥ १४ ॥ ततेां ते कोटुंबिया दुच्चमि वासारत्तंसि पढमपाउससि महावुट्टिकायंसि नित्रइयांस खुडायारं सुपरिकर्मियं करेति २ ता ते साली वुप्पति, दोबांप उक्खणियहए जाति, जाव चलण तलमलिए करेति २ ता पुर्णति तत्थणं सालीणं बहवे कुंड जाए जब एगदेमंसि टुवेति २त्ता संरक्खमाणा संगोवेण विहरति ॥ १५ ॥ ततेनं से सूर्पादि से झटक कर मगध देश में प्रसिद्ध पस्था नाम का पाप जिसने दाने हुवे ॥ १३ ॥ फर कौटुम्बिक पुरुषोंने उन दाने को एक नये घंड में भर कर उस का मुंह बंध कर उस पर लिपन किया यात् उरूपर लक्षण मुद्रा की. फीर कोष्टागार के एक विभाग में उस घड को रखा ॥ १४ ॥ दूसरी वर्षा ऋतु में जब प्रथम वर्षा हुई तब तृणादेि निकालकर एक क्यारा बनाय उन में शाली के दाने बाये और फीर ( वहां से नकाल कर रोप किया. यावत् पत्रवाली यावत् परिषका होने पर तीक्ष्ण दातडे से कारणी की. पांव के तलिये से उस को मसला यावत् बहुत कूंडे में भर कर कोष्टागार के एक विभाग में रखी. और उसको रक्षा करते हुने यावत् विचरने लगे || १५ ॥ तीसरी वर्षा ऋतु में प्रथम वर्षा काल में बहुत
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० प्रकाशक - राजावादूर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसाद
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