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ति, २ ता तिसंज्झं पडिलागरमाणी २ विहरति । ८ ॥ तते से पणे सत्थचाहे तहेव मित्त जाव चउत्थं रोहिणियंसुण्हं सदावइ २ . त्ता जाव तं . भषियव्वं एस्थ कारणेणं तिकटु, तं सेयं खलु ममएए पंचसालिअक्खए सारख माणीए संगोवेमाणीए संवर्ल्डमाणीए तिकटु, एवं संपेहेति एवं संपेहेत्ता कुलघर पुरिसे सदावेइ २ त्ता एवं वयासी-तुभेणं देवाणुप्पिया ! एए पंचसालिअक्लए गिण्ह २त्ता सारक्खमाणा संगो माणा, अणुपुत्रे संवुडहा फ्डम पाउसंसि महावुट्टि
कार्यसि निवइयंसि खुड्डागंकेयारं सुपरिकंम्मियं करेह र ता इमं पंच सालिअक्खए ई संभाल करती हुई विचरने लमी ॥ ८॥ धना सार्थवाहने रोहिणी नामकी चौथी पुत्रवधू को पोलाइ
यावत् तीसरी रक्षिता जैसे विचार किया कि इस में कुच्छ कारन होना चाहिये. इम से इन पांचों दाने में की रक्षा करना, गोपना व वृद्धि करना मुझे श्रेय है. ऐमे विचार कर अपने घर के पुरुषों को बोलाये और कहा कि अहो देशानुपिय। ये मेरे शालि के दाने ले जावो इस का रक्षण करते. गोपन करते व
वृद्धि को, पथम वर्षा काल में जब बहुत वर्षा होवे तब सृण घास रहित अच्छी भूमिमे एक छोटा 11 वा. इन पांच शालि के दाने को बोत्रो. फीर उसे वहां से उखाद कर देको ।
षष्टा,ज्ञाताधमकथा का प्रथम श्रुसस्कंध 4
रोहिणी का सातवा अध्ययन 08
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