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सत्र
+१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
कमलागरसंडबोहए उट्रियंमिसूरे सहस्सरस्सिमिदिणयरे तेय साजलंते सर्याणजाओ
उठेइ २ चा जेणेव अदृणसाला तेणेव उवागच्छइ, अट्टणसालं अणुपवीसइ २ त्ता . अणेग वायामजोगवग्गण वामद्दण जुद्धकरणेहिं संतेपरिस्संते सयपाग सहस्सपागेहि सुगंधवरतेलमाइएहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मदणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सबिदिय गायपल्हायणिज्जेहिं अभिगिएसमाणे तेलचम्मरिस पडिपुण्णपाणिपाय सुकुमाल
कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहि, दक्खेहिं पट्टेहिं, कुसलेहि, मेहावीहिं, निउणसि निलगा, लोक में दृष्टि विषय का स्पष्ट प्रकाश होने लगा, कमल आगर(वन)को प्रति घोधित(जाग्रत) करते हुये हजार किरणोंवाला सूर्य तेज मे देदीप्यमान होने लगा. तब श्रेणिक राजा अपने शयन से उठकर मर्दनशाला में गया. मदनशाला में प्रवेश कर के व्यायाम योग्य, वर्गण [लटकना) उछलना, व्यामर्दन परस्पर) हस्तादिक अंगों मरोडना मल्लयुद्ध वगैरह व्यायाम से श्रयित बहुत श्रमित होकर, शतपाक व सहस्र पाकवाले, पुष्ट करनेवाले, बल की वृद्धि करनेवाले, कामकी वृद्धि करनेवाले, मांसादिक की वृद्धि करनेवाले, व इन्द्रियों व गात्रों को आनंदकारी एसे श्रेष्ट तैल से अपने शरीरका मर्दन कराया, मर्दन करने वाले प्रतिपूर्ण हस्त पांव मुकोमल हस्त पाव के तलियेवाले, निपुण, दक्ष,पटु,कुशल,मेधावी,(पंडित)मालशर्क
प्रकाशक राजावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावाथ
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