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री मुनि श्री अमालक ऋषिमी. नुवादक-त्रालब्रह्मच
थाहिं कहाहि सुमण जगिारंय. पडिजागरमाणी २ विहरइ ॥ २१ ॥ तएणसे सेणिए. . राया पच्चुसकाल समयसि कोडुबिय पुरिसे सहावेइ २ ता एवं पयासी-खिप्पामेव भो देवापिया! बाहिरियं उवष्टुणसालं अज स बिसेस परमरम्मं गंधोदगसित्तं सुइय सम्मजिउवलितं पंचवण्णसरस राभिमुक्कपुष्फजोवयार कलियं कालागुरु पवर• कुंघरुक तुरुक्क धुवडझंत मघमघंत गंधद्वयाभिरामं सुगंधवरगोधयं गंधवडियं भूयं करेह
करावेहय, एत्रमाणत्तियं पञ्चप्पिणह ॥ २२ ॥ तएणं ते कोडाबय पुरिसा सेणिएणं जागती हुइ विचरने लगी. ॥ २१ ॥ अय श्रेणिक राजाने प्रभास समय में कौटुम्बक [ आदेश कारी] घुरूपों को बोलाकर ऐसा बोले-अहो देवानुप्रिय ! बाज बाहिर की उपस्थान शाला [ राज्यसभा] हमेश मे अधिक अच्छी बनायो, उत्कृष्ट रम्नसुगंधित पानीका उसमें छिड़काव करायो, झादके कचरा सर नीकाल. दो. पांच वर्षों के अच्छे सुगंधि वाले पुपनों को उस में विखरो, कृष्णागर, श्रेष्ट कुंदरका, चीड वगैरह गंध द्रव्यों का धूप देकर उपस्यान को मघ घायपान करो, जैती तुगंधी द्रव्यकी गोलियों अथवा कस्तुरी प्रमुख की गोलियों. उपस्थान को इस प्रकार तुपसायं बनावो. अन्यको पास बनवावो. ऐना करकर मुझे मेरी आशा पीछो सुपरत करो ॥ २२ ॥ तब वह कौटुषिक पुरुष श्रेणिक राजा की पास से एसी वास सुनकर हृष्ट
भावाथ
प्रकाशक-राजाबहादर लाला मुखदव सहायजी ज्वालामसादजी.
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