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सूत्र
अर्थ
+ षष्टाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध +
नीलसोए उज्जाणे. वण्णओ, तत्थणं सोगंधियाए नगरीए सुदंसणे णामं णगरसैट्ठी परिवस अड्डे जाव अपरिभूए ॥ ३६ ॥ तेणं कालेजं तेणं समएणं सुए णामं परिव्वायए होत्या रिउव्वेम जजुनय, सामय अथव्वणवेय सहिततं कुसले, संखसमए लडट्ठे, पंचजम पंचनियमजुत्तं, सोयमूल दसप्पयारं परिव्वायगधम्मं, दाणधम्मंच, तित्थामिसेयंच, आघवेमाणे, पण्णवेमाणे, धाउरन्तपवरवत्थपरिहिए तिदंडकुडिय छत्त छन्नालिया, अंकुस पत्रितिथ, केसरि हत्थगए परिव्वायग सहस्सेणं सद्धिं संपरिवुडे जेणैव सोगंधियानयरी जेणेव परिव्वायगा वसहे, तेणेव उवागच्छति २ ता परिव्वायगा वसहंसि भंडग
काल उस समय में सौगंधिक नाम की नगरी थी. नीलाशोक नामका उद्यान था, उस में सुदर्शन नाम का श्रेष्ठि ( रहता था. वह ऋद्धिवंत यावत् अपराभूत था ॥ ३६ ॥ उस काल उस ममय में शुक नाम का परिव्राजक था. यह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद इन चारों वेदों व साठ तांत्रिक
शास्त्रों में कुशल था, उस
का मत सांख्य था, पांच यम व नियम से युक्त था, शूचि मूल दश प्रकार का परिवाजक धर्म, दान धर्म व तीर्थाभिषेक का कथन करता हुवा, गेरु से रंगित करके रक्त वस्त्र पहिन कर, त्रिदंड कुंड, छत्र, छन्नलिका, अंकुश, पवित्रता सूचक ताम्बे की अंगूठी व केसरी सो वस्त्र का खण्ड यों सातों वस्तुओं हाथ में
१ मोर पोंछ की बनती है, २ वृक्षों का छेदन के लिये.
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48+ सेलग राजर्षि का पांचवा अध्ययन 4
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