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सत्र
एति तं सव्वं निवारेमि ॥ १९ ॥ ततेणं से थावच्चा पुत्ते कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-जणं तुमं देवाणुप्पिया ! मम जीवियंतकरणं मच्चुएजमाणं निवारेसि, जरंवा सरीर एवं विणासणि सरीरं अवइयमाणि णिवारेसि, ततेणं अहं तव बाहुच्छायं परिग्गहिए विउले माणुस्सए कामभोगे भंजमाणे विहरामि ॥ २० ॥ तेणं से कण्हवासुदेवे थावश्चापुत्तणं एवं वुत्तसमाणे थावच्चापुत्तं एवं वयासी-एएणं दवाणुप्पिया ! दुरतिकमणिज्जा णो खल सक्कासु बलिएणाधि देवणावि दाणवेणवि निवारित्तए, नन्नत्थ अप्पणो कम्मक्खएणं ॥ २१ ॥ ततेणं
से थावच्चापुत्ते कण्हवासुदेवं एवं वयासी-जइणं एए दुरतिक्कमणिज्जा णो खलु सक्का IF निवारण करूंगा ॥ १९ ॥ कृष्ण वासुदेष का ऐसा कथन सुनकर थावर्चा पुत्र बोले अहो देवानुमिय !
यदि थाप मेरे बीषित का अन्त करनेवाला मृत्युव-शरीर के रूप का विनाश करनेवाली जरा का निवाकारण करोगे तो में आपके आश्रय में रहकर मनुष्य संबंधी विपुल काम भोग भोगचूंगा ॥२०॥ थावर्चा
चुन के ऐसे करने पर कृष्ण पामुदेवने कहा-अहो देवानुपिय! यह दूरतीक्रमनीय है. इस को बखवान देष या दानव भी निवारने को शक्तिपान नहीं हैं. यह कर्म क्षय सिवाय नहीं होसकता है ॥२१॥ व थापर्चा पुषने कृष्ण वायदेव को ऐसा कहा कि जब यह मृत्यु ब जरा मिटाने का आप नहीं कर
बमुकादक पाउन मुनि श्री बमोसक ऋषि
प्रमा -राजापार का मुखदधर्मशयजी कालमसदानी
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