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________________ सूत्र अर्थ 48 अनुवादक -बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी निरुह भिन्नमुटुप्पमाणे मयूरी अंडए पसवति२, से तेणं पक्खत्राएणं सारक्खमाणी संगोमाणी संचिमाणी विहरति ॥ २ ॥ तत्थणं चंपाए णयरीए दुबे सत्यवाह दारगा परिवसंति, तंजहा- जिणदत्तपुत्तेय, सागरदत्तपुत्तेय || सहजायया सहवड्डियया, सहपसुकीलियया, सहरारदरिसी अन्नमन्न मणुरत्तया, अन्नमन्नमणुव्वया, अन्नमन्न छंदाणुवत्तया, अन्नमन्नहियायपिय कारया, अन्नमन्नेसु गिहेसु किच्चाई कराणजाइ पचणुब्भवमाणा विहति ॥ ३ ॥ सतेणं तेसिं सत्थवाहदारगाणं अन्नयाकयाइं { एक वन मयूरी ने वृद्धि पाये हुए पर्याय से प्रत्रत्रे काल के नजीक आये हुवे, चांवल के आटे जैसे श्वे रंगवाले, किमी प्रकार के व्रण दोष रहित पोली मुष्टि के प्रमाणवाले दो अण्ड प्रस्रवे. वह अपनी पांखों में उन की रक्षा करती हुई, उन का गोपन करती हुई वहां ही रहती थी ॥ २ ॥ उन चंपा नगरी में दो सार्थवाह के पुत्र रहते थे. जिन के नाम-जिनदत्त व सागरदत्त. उक्त दोनों साथ ही जन्मे हुए, साथ ही बडे हुए, पांशुक्रीडादि साथ किये हुवे और साथ ही स्त्रियों को देखनेवाले थे. वे दोनों परस्पर अनुरक्त थे, साथ ही फीरनेवाले थे, परस्पर दोनों को प्रीति थी, परस्पर एक दूसरे के कहने जैसे चलते थे, व परस्पर गृह कार्य करते हुवे विचरते थे || ३ || अब एकदा वे दोनों सार्थवाह के पुत्रों को साथ रहते, Jain Education International For Personal & Private Use Only ● प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी ० २०२ www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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