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अनुावदक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषि
साइमं संविभागं करेज्जामि ॥ ततेणं से धण्णेसस्थवाहे तं विउलं असणं पाणं खाइम साइमं आहारेइ, तं पंथयं पडिविसजेइ ॥ ३३ ॥ ततेणं पंथए दास चेडए तं भोयण पिंडगं गेण्हइ २ जामेवदिसं पाउब्भूए तामेवदिसं पडिगए ॥ ३४ ॥ ततेणं तस्स धण्णस्स सत्थवाहस्स तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आहरियस्स समाणस्स उच्चारपासवर्णणं उवाहित्था ॥ ततेणं से धण्णेसत्थवाहे विजयं तक्करं एवं बयासी एहि ताव विजया ! एगतमवकमामो जेणं अहं उच्चारपासवणं परिवमि ॥ तएणं से विजए तक्करे धण्णंसत्थथाहं एवंवयासी-तुब्भं देवाणुप्पिया ! विपुलं असणं
पाणं खाइमं साइमं आहारियस्स. अत्थि उच्चारेवा पासबणेवा, ममणं, देवाणुप्पिया ! पुत्र को मारने वाला, दुश्पन है उसे इस में से कुच्छ भी नहीं देऊंगा तत्पश्चन् धन्नासार्थवाहने उस अशनादिक का आहार कर पथक को विजित किया. ॥३३॥ तच पेशक नामक दास भाजन के पात्र को लेकर अपने स्थान आया॥३४॥अशनादिकका आहार करने से धन्नाप्तार्थवाहको उच्चार प्रस्रवण की बाधाहुई. तष वह विजय चोरसे ऐसा बोले अहो विजय! चलो अपन एकांत में जावे कि जिससे में वहां सच्चार प्रस्रवण परिठावू. तब विनय चोरने उत्तर दिया कि अहो देवानुप्रिय! तुमने आहार किया है इस से तुम को उच्चार प्रस्रवण
प्रकाशक राजावहादुर लाला मुखदवसायी बालाप्रसादजी .
अर्थ
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