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जाव कुमारियाहिय सद्धिं संपरिवुड़े. जेणेव. रायमग्गे तेणेव उवागच्छइ २त्ता देवदिनं । दारगं एगंते ठावेइ २ बहूहिं डिभएहिय जाव कुमारियाहिं सद्धिं संपरिबुडे पमत्तेयावि विहरइ ॥ २२ ॥ इमंचणं विजए तकरे रायगिहस्स नगरस्त बहूणि दाराणिय अवदाराणिय तहेव जाव आभोएमाणे मग्गमाणे गवेसमाणे जेणेव देवादिन्ने दारए तेणेव उवागच्छइ २ देवदिन्नं दारगं सवालंकारं विभूलियं पासइ पासइत्सा देवदिन्नस्स दारगरस आभरणालंकारेसुमुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झविवण्णे पंथयं दास पचेडयंपमत्तं पासति २ दितालोयं करेति २ देवदिन्नं दारयं गेण्हति २ कक्खसि . अल्लियावेइ २
उत्तरिजेणं पिहेइ २ सिग्धं तुरियं चवलं चेतियं रायागहस्सं नगरस्स अवदारणं 19 में रखकर बहुत बालक बालिकाओं साथ प्रमाद से खेलने लगा. ॥ २२ ॥ इस समय विजय चोर है
नगर के बहुत द्वार अपद्वार यावत् देखता हुवा गवेषता हुवावदिन कुमार की पास आया, और उस कुमार को सर्व अलंकारों में विभूषित बना हुवा देखा, उस कुमार के अलंकारों में उम चोर
का मन मूच्छित हुदा, गृद्ध हुवा व तल्लीन हुचा. इस से पंथकदास को प्रपादी जानकर चारों तरफ देखकर 17उस कुमार को उढाया और कांख में दबाकर उसपर वस्त्र ढककर शीघ्र ही राजगृह नगरकी छोटी बारि में
42 अनुवादक बालबमचारी मुनि श्री अमे लक ऋषीजी *
.प्रकाशकनाजाबहादर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
अर्थ/
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