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________________ 488 अर्थ 480 पटांग ज्ञानाधकथा का प्रथम श्रुनस्कन्ध 441 णिय, तक्करट्ठाणाणिय, सिंघाडगाणिय, तयाणिय, चउक्काणिय, चच्चराणिय, णागघराणिय, भूयघराणिय, जक्खदेउलाणिय, सभाणिय, पगणिय, पाणियसालांणिय, सुन्नघराणिय; आभाएमाणे २ मग्गमाणे गवेसमाणे बहुजणस्सच्छिद्देसुय, विसमेसुय, लिहुरेसुय, वसणेसुय अन्भुदयेसुय, उस्सवेसुय, तिहीसुय, छोसुय, जणेसुय पव्वीस्मसुय, जुद्देसुय, मत्तमत्तस्सय विक्खित्तस्सय बाउलरसय, जो २ मार्ग जहां से नीकलते हैं और जहां मीलते हैं वे मार्ग, पीछे फीरने के मार्ग, जून खेलने के अखाडे ॐ मदिरापान करने के कलाल खाने, वेश्याओं के घर, तस्करों को छिपने के स्थान, तस्करों को रहने के के स्थान, गटकाकार मार्ग, तीन रास्ते मीले, चार रास्ते मीले वैसे स्थान, बहुत रास्ते मीले वैमे स्थान, नाश के देवालय,भूगों के देवालय, पक्षों के देवालय, बहुत लंगों एकत्रित होकर बैठे वैनी सभा,भनी पिलाने के पोके स्थान किराने वाले की दुकानों, अन्य उजड गृहों वगैरह स्था में देखता हुवा गरेप : करता हु । बहुत लोगों के छिद्रों देखता हुवा, जिप्त मार्ग में जाने से कोई पकडसके न ही वैमा वि पंथ में - विषमरोग से कोई व्याप्त हुवा हवे उप में, इष्ट वियोग से पीडित हुए होवे उन में रामादिक के उपद्रवों से पीडित हुए लोको में, दष्ट व्यसनों में फो हुए लोगों में, राजादिक मान से बड़े हुए लोकों में, इन्द्रादिक के उत्सव स्थान में, पुत्रादिक के प्रमा के उत्सव में, मदन तेरमादि तिथियों के उत्सा में बहुत लोगों के धन्ना साथमार का.दूपरा अध्ययन में - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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