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पटांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रृतसन्ध. १
रूवाणं बहूई जोयणाई बहूइं जोयणसयाई बहुइं जोयण सहस्माई बहूई जोयण सयसहस्साई बहूई जोयणकोडीओ बहूइं- जोयण कोडाकोडीओ उड्ड दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाण सणंकुमार माहिंद बंभ लंतग माहासुक्क सहस्माराणय पाणयारणच्चुए तिणिय अटारसुत्तरेगेवेज विमाणवासमए बीइवइत्ता विजए महाविमाणे देवत्ताएं उबवणे, तत्थणं अत्थेगइयाणं देवाणं वत्तीसं सागरोबमाइ ठिई पण्णत्ता तत्यणं महरमवि देवरस वत्तीसं सागरोवमाइं ॥ १८७ ॥ एसणं भते ! मेहे देवत्ताओ देवले ग ओ आऊक्खएणं भवक्खएण द्विइक्खएणं अणंतरं
चयंचइत्ता कहिंगच्छहिंति कहिं उवाजिर्हिति गोयमा ! महाविदेहवासे सिझिर्हिति योजन, बहुत सहस्र योजन, वहुन क्रोड योजन, व बहन कोडा कोड योजन ऊंच सौर्धा ईशान, सनत्कुमार, माहन्द्र, ब्रह्म, लंतक महाशुक्ल महरवार, आणत, प्राणत, आरण व अच्युत देवलोक से ऊपर १०८ ग्रैय विमान त्रो उल्लयंकर वेजय नामक महावियान में देवतापने उत्पन्न हुवा. वहां किसनेक देवों की बत्तीस सागरोपन की स्थिति कही, वैसे ही मेघ देवकी बत्तीम सामरोपम की स्थिति है ।। १८७ ॥ अहो भगवन! वह मेघ देवता उन देवलोक में से आयुष्य, भव व स्थिति का क्षय से 30 चाकर उत्सान होगा ? अो गौतम. महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सीगे, बुझेगे, निर्वाण प्रा।
क्षिप्त (मघकुमार ) का प्रथम अध्याय 43
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