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तुमं मेहा ! जेणेव से मंडले तेणेव उवागच्छइ २ त्ता तेहिं बहूहिं सीहहिं जाव चिल्ल हिय एगयओ विलधम्मेणं चिट्ठामि ॥१६०॥ तएणं तुम मेहा ! पाएणंगतं कडुइ स्मावि तिकटु, पाएउक्खित्त भेपिचणं अंतरंसि अण्णाहय बलवंतेहिय सत्तेहिय पल्लाइजमाणे.२ ससए अणुपवितु ॥ १६१ ॥ तएणं तुम मेहा ! गायंकंडुइत्ता पुणरविपायं पडिणिक्खामिस्सामि तिकटु तं ससयं अणुपविटुं पासइ २ ता पागाणु कंपयाए, भूयाणुकंपयाए, जीवाणुकंपयाए, सत्ताणुकंपयार से पाए अंतराचेव संधारिए णो चेवणं णिक्खित्ते ।। १६२ ॥ तएणं तुम मेहा ! ताए पाणाणुकंपयाए जाव
सत्ताणुकंपयाए, संसार परित्तीकए नणुस्साउए पिबडे ॥ १६३ ॥ तएणं से यावत् चिल्लर के साथ एक बिल में रहने वाले जैसे रहा. ॥ १६ ॥ अहो मेघ ! महां तैने अपना शरीर खुनालने के लियपात्र उठाया. हमले में अन्न बलवनमाण की ठोपास ५ए शशा उठाय हुए पांच नीचे की जगह में आगया. ॥१६॥ अहो मेघ! शरीर के प्रत्याजाल कर पांच नीचे रखने का तेने विचार
किया जिसने में एक शशांक को अपना पांचवीन शाला हुवा देवर प्राण, भूत. जीव व सत्व की अनुकंपा असे तने वर चवीचवा परंतुनाये रखा नहीं. ॥ १६२ ॥ अहो मेघ! प्राण यावत् सस की
नुकंपा रोने उस समय संसार पैरत किया और मनुष्य के आयुष्य का बंध किया. ॥ १६२ ॥ वह
में अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक पिजी -
प्रकाश राजाबहादुर काला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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