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महंत वसतेनु कर्मण पंचमुउऊ मइकर्ता गिम्हवालसमपंसिः जेठामुलमासेमा पायचं समुट्टिएणं मुक्क तण्ण पत्त कयवर मारूय संजोगा दीविएणं महाभय करणं हयवहेणं वणदव जालपसंपलित्तमः वर्णतेनु धृमाउलासु दिलासुः महावाप्रवेगेणं संघट्टिए मुग्छिण्णजालेमु, आवयमाणेसुय पोखरक्तासु, अंसो २ मिसायमाणे सुमय कुहिय विणि? किमिय कहमण विस्भाम्भाण पाणीयंत सुवण्णतेसु भिंगारक वीण कंदीयरवेमु सरफरस अणिदुरिट याहितबिद, मग्मेंस दुमु तण्हावसमुक
खपयाडय जिब्भतालुय. असंपुडियतुंड पकिससंघ ससते. मुगिम्हमह उष्णवाय अर्थ एकदा माद ऋतु श्रावण माद्रपद, वर्षाऋतु-अनि कतिक, सादातु-पसर पोप, मन्तऋतुमहाकाल्गुन IFऔर वसंत ऋतु-चत्र, वैशाख, यो पांगे ऋतु व्यतीत होकर श्रीष ऋतु के ज्योष्ट व अपार पास का समय
लगा. उस में वृक्षोंका परस्पर संघटन हो अनि प्रस्ट हुवा,बहा भाकर दोसन लगाम की अनियों की माला प्रतिज्याला से पदीश हुना, धूम्र के गोटेगोट वनखण्ड के अंतक पर्यन्त व्यास.ए, पहा बाबु के वेग से मशित होकर सुटी हुई ज्वाला समूह चारों दिशि में पड़ने लमे सर्व आनिमय देखापे लगा, वृक्षों के छिद्रों में अपि प्रवेश कर आये. प्रज्वलित होने लगी. मृत्यु पाये हुए शादि पशुषों के कलेवर बोडे मनी में रहने से डगपिन या, नाले साल के नीर बीग हुए, मा. बता धारादि: पक्षियों .
अमुवादक-पालनमचारी मुनि श्री अकोलक ऋषिमी
.काका-राजावर लालामुखदेव सहावजी ज्वालामसादर
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