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अनुबांदक-बालबमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषि
पौवस्गत्तावर अजीणपमाणजुत्तषुच्छे पडिपुण्णसुचारुकुम्मचलणे पंडरसुविसुर णिरणिरुवहयविसतिणेह छदंते सुमेरुप्पभेगानं हत्थिरायाहोत्था ॥ १३ ॥ तत्थणं तुम मेहा ! बहुहिं हत्याहिय हत्यगियाहिय लोहएाहिय लोटियाहिय कलभहिय कलभियाहिय सडिसंपरिबुडे हत्थी सहस्सणायए देसए पागडीए टीवए जूहबईविंदपरीयटुए, अण्णेसिंच बहुणहत्थी कल माणं आहेव जाव विहरसि ॥१३८ ॥ . तएणं तुम मेहा ! णिचप्पमत्तेत्ति पललिए कंदप्परई मोहणसीले अवितिण्ण काम
.मोगेतिसिए बहुहिं हस्थीहिय जाव सहिं संपरिबुडे वेयगिरिपायमूले-गिरी य, F{पुण्याला, मनोहर कावे असे पत्रिवाल . धालो विशुद्ध निर्मल सेजवंत उपद्रव रहित फटे आदि दोषों रहित । विषस बीसनल पाला, छह देतू भूल 'मुपेरुमभ' नामक इथियों का राजा त था ॥ १७ ॥ अहों मेघ ! वहां तू बहुत पुवावस्थावाले हाधिों, हायिणियों, नरबच्चे व मादावची च छोटे कुलभ कलभी के परिवार सहित फिरतावा. एकहजार हाथिणियोंका नायकथा, हितमार्ग बतानेमे प्रकर्ष अग्रगामी वनकर रहताथा, हामिणीयों के बुध में वृद्धि करने वाला था, और अन्य बहुत हाथी व छोटे हाथी का अधिपति पना करता हुवा विचरमा प्रा. ॥ १३८ ॥ और भी अओ मेष ! तू सदैव लीला क्रीडा करता हुना काम भोग, रति मोह के सभाप का काम भोगों को पार नहीं पहुंचा दुवा र पाल क्षित पनकर बहुत हाथियों से बावत् पररा।
प्रकारकरावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
मर्य
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